२५२
वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
५०)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक दयालदास बनिया की
वार्ता
दयालदास
बनिया के पास एक लाख रूपये थे,
जिन्हें
उसने जमीन में गाड दिया और एक
पैसा भी खर्च न करने का नियम
ले लिया|
एक दिन
श्रीगुसांईजी वहाँ पधारे|
वह
दयालदास उनका सेवक हो गया|
उसने
कहा-
" महाराज,
एक पैसा
भी खर्च न हो और मेरा कल्याण
भी हो जाए,
ऐसी
रीति सिखाओ|
मै बाहर
आना नित्य कमाता हूँ और चार
आना खर्च करता हूँ|"
श्रीगुसांईजी
ने कहा-"
तू
मानसी सेवा कर|"
उसने
मानसी सेवा की सब रीति भी सीख
ली| वह
दो प्रहर तक मानसी सेवा करता
था,
अन्य
कुछ भी काम नहीं करता था|
इस
प्रकार करते करते एक दिन उसने
मानसी सेवा में खीर बनाई,
उसमें
खांड अधिक गिर गई|
वह उसे
निकालने लगा|
श्रीठाकुरजी
ने उसका हाथ पकड़ा और आज्ञा
की-"इसमें
तेरा कुछ भी खर्च नहीं लगा है,
फिर
तू क्यों खांड पुनः निकाल रहा
है?"
यह बात
सुनकर उसका अन्त:करण
खुल गया|
भगवत
स्वरूप का साक्षात्कार हो
गया|
उसने
गडा हुआ धन एक लाख रुपया
श्रीगुसांईजी को भेज दिया|
उसका
जैसा द्रव्य में चित्त था,
वैसा
ही श्रीठाकुरजी में लग गया|
वह
दयालदास बनिया ऐसा कृपा पात्र
था,
जिसे
मानसी सेवा की सिद्धि हुई|
।जय
श्री कृष्ण।
0 comments:
Post a Comment