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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
४९ )श्रीगुसांईजी
के सेवक डोकरी धानी पूनी वाली
की वार्ता
उस डोकरी ने
श्रीगुसांईजी से विनती करके
अपने माथे श्रीठाकुरजी पधराये|
वह नियम
से सेवा करने लगी|
वह सूत
कात कर निर्वाह करती थी जब वह
कातने बैठती तभी श्रीठाकुरजी
उस डोकरी के पास की पूनी में
विराज जाते|
बाल
लीला करते और पूनी की गादी-तकिया
करके बैठ जाते|
एक पूनी
उस डोकरी के हाथ में देते और
भूख लगती तो धानी माँगते थे|
एक दिन
उस डोकरी की व्यवस्था श्रीगुसांईजी
के तीसरे लालजी ने देखी|
उन्होंने
उस डोकरी से कहा-"
ये
लालजी तुम हमें दे दो|"
उस
डोकरी ने लालजी उनके यहाँ पधरा
दिये|
डोकरी
श्रीठाकुरजी के बिना बहुत
दुखी हुई|
श्रीठाकुरजी
उस डोकरी के आर्त्तभाव को
नहीं सह सके|
श्रीठाकुरजी
ने बालकृष्णजी से कहा-"
मुझे
तुम डोकरी के यहाँ पहुँचाओ|
धानी-पूनी
के बिना मेरा मन तुम्हारे यहाँ
नहीं लगता है|"
श्रीबालकृष्णजी
ने रात में ही आकर डोकरी के घर
श्रीठाकुरजी को पधरा दिया|
डोकरी
से कहा-"
जैसे
तुम नित्य करती थी,
वैसे
ही करो|"
श्रीठाकुरजी
तेरे पर प्रसन्न हैं|
वह
डोकरी ऐसी कृपा पात्र थी जिसके
बिना श्रीठाकुरजी नहीं रह
सके|
।जय
श्री कृष्ण।
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