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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
३६)श्रीगुसांईजी
के सेवक मानिकचंद ओसवाल-बनियाँ
की वार्ता
मानिक चंद
को भी श्रीगुसांईजी के पूर्ण
पुरषोत्तम रूप में दर्शन हुए|
जब
मानिक चंद और उनकी स्त्री
श्रीगुसांईजी के सेवक हुए तो
मानिकचंद ने सर्वस्व अर्पण
कर दिया|
मानिकचंद
ने सेवक बनकर यह पद गाया-
" चहुँ
युग वेद वचन प्रतिपारयो"।
इस प्रकार उन्होंने अनेक पदों
का गायन किया|
इसके
बाद मानिक चंद को श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की,
कि तुम
व्यापार करो और घर में रहकर
तुम श्रीठाकुरजी की सेवा करो|
इसके
बाद मानिक चंद फिर से व्यापार
करने लग गए|
जब
मानिक चंदजी वृद्ध हुए,
तो
श्रीठाकुरजी को पधरा करके
श्रीगुसांईजी के निकट आकर
बैठे|
मानिक
चंद का ऐसा नियम था कि पत्तल
पर महाप्रसाद थोड़ा भी नहीं
छोड़ते थे|
जितना
भी महाप्रसाद लेते सभी को
ग्रहण कर जाते थे|
एक दिन
श्रीगोकुलनाथजी के मन्दिर
में मानिक चंदजी प्रसाद लेने
के लिए बैठे थे|
(उन)
साचोराओ
को यह जानकारी थी,
कि ये
पत्तल पर कुछ भी नहीं छोड़ते
है| ये
पत्तल को धोकर पी जाते है|
उन
साचोराओ ने मजाक(विनोद)
की
दॄष्टि से भात के नीचे थोड़ा
सा गोबर रख दिया|
मानिकचंद
सभी को महाप्रसाद के रूप में
गोबर सहित खा गए|
इस बात
की खबर श्रीगोकुलनाथजी को
लगी तो श्रीगोकुलनाथजी ने
हाथ में जल लेकर साचोराओ को
शाप दिया-"
तुम्हारा
साचोरा देह से किसी का उद्धार
नहीं होगा|"
उसी
दिन से श्रीगोकुलनाथजी के घर
में साचोरा जल पर्यन्त सेवा
का स्पर्श नहीं कर पावें,
ऐसा
बन्दोबस्त किया गया|
वे
मानिक चंद ऐसे कृपा पात्र थे,
जिनकी
कानि(मर्यादा)
श्रीगोकुलनाथजी
भी रखते थे|
जिनकी
कानि(मर्यादा)
के लिए
आज तक साचोराओ को श्रीगोकुलनाथजी
की सेवा में नहीं आने दिया
जाता है|
।जय
श्री कृष्ण।
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