Thursday, May 28, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Manikchand Osval-Baniya Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ३६)श्रीगुसांईजी के सेवक मानिकचंद ओसवाल-बनियाँ की वार्ता


मानिक चंद को भी श्रीगुसांईजी के पूर्ण पुरषोत्तम रूप में दर्शन हुए| जब मानिक चंद और उनकी स्त्री श्रीगुसांईजी के सेवक हुए तो मानिकचंद ने सर्वस्व अर्पण कर दिया| मानिकचंद ने सेवक बनकर यह पद गाया- " चहुँ युग वेद वचन प्रतिपारयो"। इस प्रकार उन्होंने अनेक पदों का गायन किया| इसके बाद मानिक चंद को श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की, कि तुम व्यापार करो और घर में रहकर तुम श्रीठाकुरजी की सेवा करो| इसके बाद मानिक चंद फिर से व्यापार करने लग गए| जब मानिक चंदजी वृद्ध हुए, तो श्रीठाकुरजी को पधरा करके श्रीगुसांईजी के निकट आकर बैठे| मानिक चंद का ऐसा नियम था कि पत्तल पर महाप्रसाद थोड़ा भी नहीं छोड़ते थे| जितना भी महाप्रसाद लेते सभी को ग्रहण कर जाते थे| एक दिन श्रीगोकुलनाथजी के मन्दिर में मानिक चंदजी प्रसाद लेने के लिए बैठे थे| (उन) साचोराओ को यह जानकारी थी, कि ये पत्तल पर कुछ भी नहीं छोड़ते है| ये पत्तल को धोकर पी जाते है| उन साचोराओ ने मजाक(विनोद) की दॄष्टि से भात के नीचे थोड़ा सा गोबर रख दिया| मानिकचंद सभी को महाप्रसाद के रूप में गोबर सहित खा गए| इस बात की खबर श्रीगोकुलनाथजी को लगी तो श्रीगोकुलनाथजी ने हाथ में जल लेकर साचोराओ को शाप दिया-" तुम्हारा साचोरा देह से किसी का उद्धार नहीं होगा|" उसी दिन से श्रीगोकुलनाथजी के घर में साचोरा जल पर्यन्त सेवा का स्पर्श नहीं कर पावें, ऐसा बन्दोबस्त किया गया| वे मानिक चंद ऐसे कृपा पात्र थे, जिनकी कानि(मर्यादा) श्रीगोकुलनाथजी भी रखते थे| जिनकी कानि(मर्यादा) के लिए आज तक साचोराओ को श्रीगोकुलनाथजी की सेवा में नहीं आने दिया जाता है|


।जय श्री कृष्ण। 
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