Thursday, May 14, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Chuhude Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ३२)श्रीगुसांईजी के सेवक एक चुहुड़े की वार्ता

एक चुहुड़ा गोवर्धन में रहता था| श्रीनाथजी प्रतिदिन बिलछु कुण्ड पर खेलने जाते थे, वहाँ पर ही वह चुहुड़ा घास खोदने जाता था| श्रीनाथजी ने उसको वहाँ दर्शन दिये| वह चुहुडा प्रतिदिन श्रीनाथजी से बातें करता था| एक दिन वह चुहुड़ा श्रीनाथजी के साथ गोपालपुर तक बतियाता आया| श्रीगुसांईजी ने इसे देखा तो उसे बुलाकर पूछा-" श्रीनाथजी ने तुझसे क्या बातें की हैं?" उसने कहा-" महाराज, वन की बातें कर रहे थे| मुझे ये वन में प्रतिदिन मिलते हैं| आपकी कृपा से मुझको दर्शन देते है| जिस दिन मुझको दर्शन नहीं होते है, उसी दिन मेरा अन्न, जल छूट जाता है| ये कृपा करके उसी दिन, रात को या दूसरे दिन प्रातः काल मुझे दर्शन दे देते है|" श्रीगुसांईजी ने अपने मनुष्यों से कहा-" राजभोग की माला बोले तब इसको सबसे पहले दर्शन करा दिया करो| जब यह दर्शन करके बाहर आ जाए तब फिर सभी को दर्शन कराया करो|" श्रीगुसांईजी के कथन के अनुसार चुहुड़ा एकदिन यथा समय पहुँच नहीं सका| राज भोग हो चुके| राज भोग हो चुके| ताला मंगल हो गया( ताला लगा दिया गया) तब आया| उसका चित्त बहुत उदास हुआ| उदिग्न्ता के वेग से ज्वर चढ़ आया| अतः वह मन्दिर के पीछे जाकर पड़ गया| उसे बहुत विरहताप हुआ| उसके दुःख को श्रीनाथजी सहन नहीं कर सके| श्रीनाथजी ने अपनी छड़ी से दीवाल खोदकर एक मोखा बना दिया| उस मोखा में से उसे बुलाया| वह उठकर खड़ा हुआ| उसने श्रीनाथजी के दर्शन किये| श्रीनाथजी ने उसे मोखा में से दो लड्डू दिये| वह वहाँ से लड्डू लेकर गिरिराजजी से नीचे आया| उसने उन लड्डूओं में एक तो खा लिया और दूसरे को अपने अगोछा में बाँध लिया| गोपालपुर में चर्चा फ़ैल गई किसी ने मन्दिर तोड़कर मन्दिर के पिछवाड़ में एक मोखा निकाल लिया है| यह सुनकर श्रीगुसांईजी भी बहुत उदास हुए| सभी भितरियाओ ने मन्दिर के सामान की सँभाल की| सामान तो कुछ गया नहीं था| उस चुहुड़े ने श्रीगुसांईजी से विनतीकर कहा-" यह मोखा तो श्रीनाथजी ने मुझे दर्शन देने के लिए बनाया था| उसने शेष बचा हुआ लडुवा भी दिखाया| दो में से एक लड्डू को स्वयं द्वारा खाना स्वीकार किया| अब तो श्रीगुसांईजी ने कहा-" यह जब भी दर्शनाथ आए इसे सर्वप्रथम दर्शन करा दिया करो| इसके लिए प्रतिदिन पत्तल भी निकाल कर दिया करो| वह चुहुड़ा श्रीनाथजी का ऐसा कृपा पात्र था जिसे श्रीनाथजी के बिना जब कुछ फीका लगता था|

।जय श्री कृष्ण। 
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