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वैष्णवों की वार्ता
(वैषणव
३१)श्रीगुसांईजी
के सेवक गुजरातवासी एक क्षत्रिय
वैष्णव की वार्ता
ये
गुजराती क्षत्रिय वैष्णव
चाचा हरिवंशजी के साथ गुजरात
जा रहे थे|
ये
क्षत्रिय वैष्णव जब भगवद
वार्ता करते थे तो भगवद रस में
निमग्न हो जाते थे|
उनकी
रहस्य वार्ता को स्वयं
श्रीगोवर्धननाथजी सुना करते
थे|
एक
बार ये क्षत्रिय वैष्णव मार्ग
में भटक कर चाचाजी से बिछुड़
गए|
इनको
गाँव में एक वैष्णव इन्हे अपने
घर लिवा कर ले गया। वह वहाँ
भगवद वार्ता करने बैठ गया|
इस
क्षत्रिय वैष्णव को ऐसा रसावेश
हुआ कि इसे देहानुसंधान ही
नहीं रहा|
इधर
चाचाजी इस वैष्णव को ढूँढ़ते
ढूँढ़ते यहाँ आ पहुँचे तो इसे
भगवद रस में निमग्न पाया|
भगवद
वार्ता करते करते सारी रात
गुजर गई|
श्रीगोवर्धननाथजी
खड़े खड़े इनकी वार्ता सुनते
रहे|
श्रीगोवर्धननाथजी
का भी जागरण हो गया लेकिन इसे
कोई देहानुसंधान नहीं हुआ|
चाचाजी
भी उनके पास जाकर खड़े रहे|
इसे
कुछ भी ज्ञान नहीं हुआ|
चाचाजी
ने उसे हाथ पकड़कर उठाया,
तब
इसे देहानुसंधान हुआ|
चाचाजी
ने कहा-"
तुम
तो भगवद रस में मग्न हो रहे
हो,
श्रीगोवर्धननाथजी
भी सारी रात खड़े रहे है|
आपके
इस तरह भगवद रस में लीन होने
से श्रीठाकुरजी को बहुत श्रम
होता है|
अतः
सँभलकर भगवद वार्ता किया करो|
यह
कहकर चाचाजी उनको ले गए|
वह
क्षत्रिय वैष्णव ऐसा कृपा
पात्र था जिसकी वाणी को सुनने
के लिए श्रीगोवर्धननाथजी
स्वयं पधारते थे|
उसके
भाग्य की सराहना कहाँ तक की
जाए?
।जय
श्री कृष्ण।
jai shree krishna
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