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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
३४)श्रीगुसांईजी
के सेवक पठान के बेटा की वार्ता
एक पठान के
बेटा ने श्रीगुसांईजी से
नामसुना और अपनी जाति के व्यवहार
को छोड़कर वैष्णवों के आचरण
का पालन करने लग गया|
उसके
माता-
पिता
और सगे संबंधी पृथ्वीपति के
पास पुकार करने गए|
पृथ्वीपति
ने उसे आदेश दिया-"
तू
कण्ठी तोड़कर फेंक दे|"
उसने
कहा-"
इस
कण्ठी से मेरा दिल लगा हुआ है|
यह मुझे
बहुत प्रिय है|"
पृथ्वीपति
ने कहा-"
तलवार
लाओ,
इसका
माथा काट डालते है|"
यह
सुनकर पठान का बेटा बोला-"
अन्य
किसी की तलवार को क्यों मँगाते
हो, ये
मेरे पास है,
इसीसे
मेरा सिर काट डालो|"
बादशाह
ने उसके साहस को देखकर एवं
विचार करके कहा-"
इसकी
धर्म में प्रगाढ़ निष्ठां है|
मै इस
पर बहुत प्रसन्न हूँ|
इससे
कुछ भी मत कहो|
यह बड़ा
सच्चा मनुष्य है|"
इसके
बाद बादशाह ने उसे अपनी अधीनस्थ
नौकरी पर रख लिया|
वह पठान
का बेटा श्रीगुसांईजी की टेक
का ऐसा कृपा पात्र था,
जिसने
कण्ठी तोड़कर फ़ेंकने के बजाय
अपना माथा कटवाना स्वीकार
किया|
ऐसे
भगवदीय की वार्ता कहाँ तक कहे|
।जय
श्री कृष्ण।
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