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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
३०)श्रीगुसांईजी
के सेवक मधुकर शाहराजा की
वार्ता
मधुकर
शाह ओड़छा नगर का राजा था|
श्रीगुसांईजी
एक बार ओड़छा पधारे थे तो वह
सेवक हुआ था|
राजा
श्रीठाकुरजी की सेवा करने
लगा|
जो
भी वैष्णव आता था राजा उसका
बहुत सत्कार करता था|
जो
भी कोई कंठी-बंध
व्यक्ति आता था तो राजा उसके
चरण स्पर्श करता था और पैर
धोता था|
उसके
परिवार वाले उसकी हंसी(मश्करी)
करते
थे|
एक
दिन राजा के काका ने एक गधा
मँगाकर,
उसको
दस-बीस
कण्ठी पहना कर और तिलक करके
राजा के पास भेजा|
राजा
ने गदर्भ के चरण स्पर्श किए|
पगधोए
और चरणमृत लिया|
राजा
का शुद्ध भाव देखकर श्रीठाकुरजी
उसी समय प्रकट हुए और राजा को
दर्शन दिये|
राजा
को आज्ञा की -
" कुछ
माँग लो|"
मधुकर
शाह ने माँगा -
" प्रभो,
मेरा
ध्यान वैष्णवो में ऐसा ही
प्रेम मय बना रहे|
वैष्णव
भाव की कृपा से ही आपने मुझ को
दर्शन दिये है|"
श्रीठाकुरजी
ने प्रसन्न होकर कहा-"
तेरा
भाव वैष्णवों में ऐसा ही रहेगा|"
मधुकर
शाह श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे|
।जय
श्री कृष्ण।
यहाँ पर राजा मधुकर शाह को गुसाँई दी का सेवक बताया जा रहा है , राजा मधुकर शाह अोरछा में श्री हरिराम जी व्यास के शिष्य थे और हरिराम व्यास ही वहाँ के राज गुरु थे , श्री हरिराम व्यास के स्वंय प्रगट ठाकुर " श्री युगल किशोर 'आज भी पन्ना ( मध्यप्रदेश ) में विराजमान है . हरिराम व्यास स्वंय में बहुत विद्वान थे , भक्तमाल में उनका पूरा वर्णन है . हाँ ये कहना उचित हो सकता है , के राजा का वैष्णव आचार्यों में बहुत निष्ठा भाव था , कृपया उचित जानकारी दें ! जानकारी देनें वाले हरिराम व्यास के १४ वीं पीड़ी से है , स्थान - किशोर बन , वृन्दावन , ९९२७०९१८९९
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