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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
२९)श्रीगुसांईजी
के सेवक मथुरादास की वार्ता
वे
वैष्णव गोपालपुर में रहते
थे,
एक
दिन मथुरादास ने श्रीगुसांईजी
से पूछा -
" आपकी
सृष्टि में और श्रीमहाप्रभुजी
की सृष्टि में कितना तारतम्य
है|
तब
श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की -
" हमने
तेरा त्याग किया है|"
वहाँ
दस-
पन्द्रह
वैष्णव बैठे थे,
त्याग
की बात को सुनकर उन वैष्णवों
ने उससे भगवत स्मरण(जय
श्रीकृष्ण)
करना
छोड़ दिया|
सारे
गाँव में यह प्रचार कर दिया
कि गाँव भर में उससे कोई भगवत
स्मरण नहीं करे|
कोई
उसके पास भी नहीं बैठता था|
मथुरादास
ने विचार किया कि जंगल में
जाकर जहाँ किसी को भी खबर न
हो,
अपने
प्राण त्याग कर देने चाहिए|
उसने
अन्नजल त्याग दिया|
इस
प्रकार तीन दिन बीत गए|
चौथे
दिन वह मथुरादास वहाँ से जंगल
में देह छोड़ने के लिए चला|
रास्ते
में दो कोस पर एक गॉव था|
वहाँ
श्रीमहाप्रभुजी की सेवक एक
डोकरी रहती थी|
उसका
नाम जमना बाई था|
उसे
यह अनुमान था की जमना बाई को
उसके त्याग की बात की जानकारी
नहीं होगी|
इससे
भगवत स्मरण करता जाऊ|
मथुरादास
जमना बाई के घर गए|
जाकर
इन्होने भगवत स्मरण किया|
जमना
बाई ने कहा-"
तुम
यहाँ प्रसाद लेकर जाओ|"
तब
मथुरा दास ने कहा -"
मुझे
श्रीगुसांईजी ने त्याग दिया
है|
अतः
में तो देह छोड़ने जा रहा हूँ|"
जमना
बाई ने कहा-"
तुम
तो बावली बाते करते हो,
श्रीगुसांईजी
तो किसी का भी त्याग नहीं करते
हैं|
श्रीठाकुरजी
ने श्रीमहाप्रभुजी को ऐसा
वचन दिया है-"
जिनको
तुम ब्रह्म सम्बंध कराओगे,
हम
उनका त्याग नहीं करेंगे|
उनके
दोष भी नहीं रहेंगे|
सिंद्धान्त
रहस्य ग्रन्थ में लिखा है-
" ब्रह्म
सम्बंध करणात् सर्वेषां देह
जीवयो:।
सर्व दोष निवृतिहि दोषा:
पंच
विधा:
स्मृता||"
और
अन्तः करण प्रबोध ग्रन्थ में
कहा है-'
सत्य
संकल्पतो विष्णुनान्यथा तु
करिष्यति|'
अन्यच
-
"लौकिक
प्रभुवत कृष्णो न द्रष्टव्य:
कदाचन||"
और
श्रीमहाप्रभुजी ने भी निबंध
में कहा है-
" जो
हमारे मार्ग में आएगे वे अधर्म
करेंगे या वेद की निंदा करेंगे
तो भी नरक में नहीं जाएगे किन्तु
हीन योनि में जन्म लेंगे -
श्लोक
-
"अत्रापि
वेद निन्दायामधर्म करणतथा|
नरके
न भवते पात:
किन्तु
हिनेषु जायते|"
श्रीठाकुरजी
ने श्रीगीता में कहा है-"
अह
त्वा सर्वपापम्यो मोक्षयिष्यामि
मा शुच:।"
ऐसे
अनेक स्थानो पर कहा गया है,
इसलिए
श्रीगुसांईजी त्याग कैसे
करेंगे?
तेरी
बात सत्य नहीं है में नहीं
मानती हूँ|"
तुम
यहाँ बैठो,
महाप्रसाद
लेओ|
दर्शन
करो|
महाप्रसाद
लेकर में भी तुम्हारे साथ
श्रीगुसांईजी के पास चलूँगी|
तब
मथुरादास ने स्नान करके
महाप्रसाद लिया|
फिर
वह जमना बाई,
मथुरादास
को संग लेकर श्रीगुसांईजी के
पास आई|
तब
मथुरादास को देखकर श्रीगुसांईजी
ने उससे पूछा-"
वैष्णव,
तू
चार दिन से कहाँ था?"
जमनाबाई
की बात सत्य करने के लिए,
मार्ग
की स्थिरता रखने के लिए और
सृष्टि का तारतम्य जताने के
लिए श्रीगुसांईजी ने मथुरादास
को ऐसी लीला दिखाई|
वह
मथुरादास श्रीगुसांईजी के
ऐसे कृपा पात्र थे|
।जय
श्री कृष्ण।
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