Monday, February 15, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Gopaldas Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
( वैष्णव १०७ )श्रीगुसांईजी के सेवक गोपालदास की वार्ता

गोपालदास के लिए जब नाम निवेदन हुआ तो गोपालदास ने श्रीगुसांईजी से विनती की -''महाराज,अब मुझे क्या करना है ?'' तब श्रीगुसांईजी ने आજ્ઞા की -तुम गोपीनाथ का सत्संग करो |'' गोपालदास गोपीनाथ के पास जाकर रहे उनका यह विचार था कि गोपीनाथ कभी भी बिना विचारे कोई काम नहीं करते हैं | गोपीनाथ के पीछे पूर्ण पुरषोत्तम श्रीनाथजी फिरा ही करते थे | किसी कार्य से गोपीनाथ व्रज से दिल्ली गए तो उनके साथ गोपालदास भी गए | रास्ते में जंगल में रात पड़ी कोई भी मनुष्य नहीं था,एक वृक्ष के नीचे डेरा किया | थकान होने के कारण गोपालदास को नींद आ गई और गोपीनाथ सर्वोत्तम स्तोत्र का जप करने बैठ गए | जब रात सवा प्रहर व्यतीत हो गई तो एक सर्प आया और गोपालदास के गले में काटने लगा | गोपीनाथ ने उस सर्प को लकड़ी से दूर किया |पुनः सर्प आया तो गोपीनाथ ने दुबारा भू उसे दूर किया फिर सर्प आया,गोपीनाथ ने फिर हटाया | इस प्रकार उसने एक सौ बार गोपालदास पर सर्प आया और उतने ही बार उसे गोपीनाथ ने हटाया | इसके बाद सर्प ने में यह मेरे गले का रक्त पीता है तो दूसरे जन्म में,मैं इसके गले का रक्त पान करता हूँ| गोपीनाथ ने कहा- ''सर्पराज,अब तो यह गोपालदास का अन्तिम जन्म है,मै तुजे काटने नहीं दूँगा | सर्प बोला -''मैं इसका लहू पीये बिना नहीं रहूंगा |'' गोपीनाथ ने कहा-''तू बैठ,तुजे इसके गले का लहू पिला देते है |'' यह सुनकर सर्प रुक कर बैठ गया | गोपीनाथ ने एक छुरी लेकर और कटोरी को गले के नीचे रखकर,उसके गले से खून लेना चाहा | गोपालदास की नींद खुल गई | गोपालदास बोला-''कौन है ? '' गोपीनाथ ने कहा -''मैं हूँ गोपीनाथ |'' गोपालदास को सर्प के बारे में कोई जानकारी नहीं थी | उसने तो अपने मन में सोच लिया कि गोपीनाथ करेंगे सो तो भला ही करेंगे | उसके मन में यह विचार भीगोपीनाथ से कहा -''तू मुझे कहाँ तक हटाएगा | मेरा इसका तो रूणानुबंध है | एक जन्म नहीं आया कि गोपीनाथ मुझेइस घोर जंगल में मारने के लिए छुरी लिए हैं | गोपालदास को कुछ पता भी नहीं था | गोपीनाथ ने सर्प के लिए गोपालदास का लहू पिला दिया और गोपालदास के गले पर मरहम पट्टी कर दी | फिर तो गोपीनाथ भी सो गए | प्रात: काल उठकर दोनों पुनः चल पड़े | रास्ते में गोपीनाथ ने गोपालदास ने श्रीगुसांईजी से विनती की ''गोपालदास का मैंने गला काटा,तो भी यह कुछ भी नहीं बोला |'' श्रीगुसांईजी ने आજ્ઞા की -'' गोपालदास ने विश्वास रखा|'' विश्वास रखने से व्यक्ति मृत्यु से भी बच जाता है | वैष्णव के संग से जन्म जन्मान्तर के संकटो से मुक्ति मिल जाती है,यह विश्वास पक्का होना चाहिए | वास्तव में गोपालदास ऐसे श्रीगुसांईजी के कृपा पात्र थे कि जिनके विश्वास की सराहना श्रीगुसांईजी ने भी की |



|जय श्री कृष्णा|
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1 comments:

  1. श्रीजी बावा की जै।यमुनाजी की जै।महाप्रभुजी की जै।गोसाईं जी की जै।गुरुदेव जी की जै।

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