Monday, December 4, 2017

Shri Gusaniji Ke Sevak Naru Vaishnav Ki Varta (Jo Dwarika ke Marg Me Rahta Tha)


२५२ वैष्णवों की वार्ता   
(वैष्णव ३४ श्री गुसाँईजी के सेवक नरु वैष्णव की वार्ता (जो द्वारिका के मार्ग में रहता था )
एक समय श्रीगुसांईजी द्वारिका पधार रहे थे। सो वैष्णव ने श्रीगुसांईजी को अपने घर पधरा कर डेरा कराया। यद्यपि उसका घर बहुत छोटा था तथापि उसका आग्रह देखकर श्रीगुसांईजी ने वहाँ डेरा किया। श्रीगुसाईंजी ने उस वैष्णव से पूछा -"तुम अपना निर्वाह कैसे करते हो?" उस ब्राह्मण ने कहा - गावँ के बहार एक वृक्ष हे, उसके निचे अपने पहले निवास किया था, उस वृक्ष के निचे बैठकर भगवद वार्ता करता हूँ। इस गाँव से अन्य कोई वैष्णव नहीं हे। " श्री गुसाँईजी ने कहा -"उस वृक्ष के पास ले गया। वह वृक्ष मूल से उखड पड़ा और उसने श्रीगुसांईजी को दण्डवत किया। "श्रीगुसांईजी ने कहा -इस वृक्ष के पात्र -शाखा -तना अदि सभी को ले चलो, इस वृक्ष का सर्वाङग अङगीकार हो गया हे। यह वृक्ष पूर्व जन्म में वैष्णव ही था , यह अन्य लोगो के दोषो को देखता था अतः वृक्ष हुआ हे। यह बात सुनकर उस वैष्णव को बड़ा आश्चर्य हुआ। श्रीगुसांईजी द्वारिका पधारे और उस ब्राह्मण ने घर का सर्वस्व भेंटकर दिया। सो वह ब्राह्मण ऐसा कृपा पात्र था , जिससे श्रीगुसांईजी ने स्वयं निर्वाह के विषय में पूछा। जब उन्होंने अलौकिक निर्वाह बताया तो, श्रीगुसांईजी ने अनुमोदन किया। वैषणव को ऐसा ही होना चाहिए, ऐसे ही होना चाहिए , ऐसे वैष्णवों की वार्ता को कहाँ तक लिखा जाए।
                                                                                | जय श्री कृष्ण |  
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