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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
५६)श्रीगुसांईजी
की सेवक एक क्षत्राणी की वार्ता
जब
श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे
तो उस क्षत्राणी ने शरण में
लेने की प्राथना की। श्रीगुसांईजी
ने उसे स्नान करने की आज्ञा
दी। जब वह स्नान करके आई तो
श्रीगुसांईजी उसे नाम निवेदन
सुनाने लगे। उस क्षत्राणी के
मन में भावना जगी कि श्रीगुसांईजी
धीरे धीरे नाम सुना रहे हैं,
यदि
जोर से बोले तो अच्छा रहे। उसी
समय श्रीगुसांईजी हेला करके
बोले-
सुनती
है या नहीं।"
क्षत्राणी
बोली आपके वचनामृत सुनने के
लिए मै जानबूझ कर नहीं बोली
हूँ ।"
श्रीगुसांईजी
बहुत प्रसन्न हुए,
उसे
नाम निवेदन कराया। फिर श्रीठाकुरजी
पधराकर सेवा करने लगी।
श्रीठाकुरजी उससे ऐसी बालचेष्टा
करते थे,
मानों
वे यशोदाजी से कर रहे हों ।
क्षत्राणी श्रीठाकुरजी की
चेष्टा से बहुत प्रसन्न होती।
वह क्षत्राणी ऐसी कृपा पात्र
भगवदीय थी।
।जय
श्री कृष्ण।
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