Thursday, August 6, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Virakt Vaishnav Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ५३)श्रीगुसांईजी के सेवक विरक्त वैष्णव की वार्ता

वह विरक्त वैष्णव गुजरात से श्रीजी द्वार गया| श्रीगुसांईजी का सेवक हुआ| वह श्रीनाथजी, श्रीगुसांईजी और भगवदियों को एक ही स्वरूप में समझाता था| वह ब्रज में फिरा करता था| एक दिन रास्ते में एक बुढ़िया के बेटा को सर्प ने काट लिया, वह डोकरी रो रही थी| उसको देखकर उस विरक्त को दया आ गई| उसने भगवन्नाम सुनाकर उस बालक को जीवित कर दिया| यह देखकर सब लोग उस विरक्त वैष्णव के पीछे लग गए-" इस सर्प के काटे व्यक्ति को जीवित करने के मंत्र को हमें भी सिखाइए|" उस विरक्त वैष्णव ने अष्टाक्षर मंत्र को स्पस्ट किया उन ग्राम्य जनों ने कहा-" यह मंत्र तो हम भी जानते है|" ग्राम्यजनों ने उसका विश्वास नहीं किया और कहा-" सर्प का विष गलाने के मंत्र को सिखाइए, इस अष्टाक्षर मंत्र को तो हम सब जानते है|" उस विरक्त वैष्णव ने कहा-" मंत्र के प्रति विश्वास ही प्रभावी होता है| मै तो अष्टाक्षर मंत्र के अलावा अन्य कोई मंत्र नहीं जानता हूँ| मेरा इस पर अटूट विश्वास है|" यह विरक्त वैष्णव जो भी कार्य करता था नाम के प्रताप से करता था, ऐसा कृपा पात्र वैष्णव था|

।जय श्री कृष्ण।


  • Blogger Comments
  • Facebook Comments

0 comments:

Post a Comment

Item Reviewed: Shri Gusaiji Ke Sevak Virakt Vaishnav Ki Varta Rating: 5 Reviewed By: Unknown
Scroll to Top