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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
५५)श्रीगुसांईजी
के सेवक गुलाबदास क्षत्रिय
की वार्ता
गुलाबदास
श्रीगुसांईजी के सेवक थे|
श्रीगुसांईजी
की शरण में जाने के कुछ दिन
बाद वे म्लेच्छ देश में जाकर
रहे और भ्रष्ट हो गए|
भक्ष्याभक्ष्य
का सेवन करने लग गए|
अपना
नाम बदल कर गुलाब खाँ रख लिया|
श्रीगुसांईजी
ने उनके बारे में सुना तो उनको
बुलाने के लिए उनके पास एक
वैष्णव को भेजा|
उस
वैष्णव ने जाकर कहा-"
गुलाबदास,
तुमको
श्रीगुसांईजी ने बुलाया है|"
उस समय
गुलाबदास एक वैश्या के पास
बैठे थे|"
उन्होंने
वैष्णव से पूछा-
"मै
इतना भष्ट हो गया हूँ,
तब भी
श्रीगुसांईजी मुझे याद करते
है?"
यह कहकर
उसे विरहताप हुआ,
उसके
प्राण छूट गए|
वैष्णव
यह स्थिति देखकर वहाँ से चल
दिया|
जब
श्रीगुसांईजी के पास आया तो
उसने देखा कि गुलाबदास
श्रीगुसांईजी को पंखा कर रहा
है| उस
वैष्णव का सारा सन्देह दूर
हो गया|
वह
गुलाबदास श्रीगुसांईजी का
ऐसा कृपा पात्र था जिसके कर्म
विरहताप में जल गए और शुद्ध
होकर भगवल्लीला में लीन हो
गया|
।जय
श्री कृष्ण।
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