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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
५८)श्रीगुसांईजी
के सेवक पटेल वैष्णव की वार्ता
वह
पटेल गुजरात से आकर श्रीगुसांईजी
का सेवक हुआ। उसने सारी ब्रज
यात्रा भी कर ली थी। एक दिन
श्रीगुसांईजी कथा कह रहे थे।
"यमुनाष्टक
की कथा"
उस
पटेल वैष्णव ने सुनी। पटेल
ने पूछा-"
महाराज,
इन
आठ श्लोक में आपने अष्ट सिद्धि
की आज्ञा की है। परन्तु किस
श्लोक से कौन सी सिद्धि होती
है,
यह
नहीं बताया है। कृपा करके
समझाओ। तब श्रीगुसांईजी ने
आज्ञा की-
साक्षात
सेवोपयोगि देह की प्राप्ति
रूपी सिद्धि प्रथम श्लोक में
कही गई है। तत्तल्लीलावलोकन
की सिद्धि दूसरे श्लोक में
कही गई है। तदरसानुभव रूपी
सिद्धि तीसरे श्लोक में कही
है यमुनाजी का षट्गुण सम्पन्न
स्वरूप की सिद्धि चौथे श्लोक
में कही गई है। भती दातृत्व
रूपी सिद्धि पाँचवे श्लोक
में वर्णित है। भगवततात्पर्यज्ञत्व
रूपी सिद्धि छठे श्लोक में
निहित है। भगवद वशीकरण रूपी
सिद्धि सातवें श्लोक में
सम्पादित है। जिनके ऊपर भगवत
कृपा है तथा श्रीयमुनाजी कृपा
करती है,
उनको
एक-एक
श्लोक में एक-एक
सिद्धि के दर्शन होते है। इस
प्रकार श्रीगुसांईजी ने आज्ञा
की। तब उस पटेल को श्रीयमुनाजी
ने वैसे ही दर्शन दिये। जैसे
कि श्रीगुसांईजी ने कहा था।
वह वैष्णव पटेल श्रीगुसांईजी
का कृपा पात्र सेवक था।
।जय
श्री कृष्ण।
जय श्री कृष्ण
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