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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
५७)श्रीगुसांईजी
के सेवक मथुरामल और हरजीमल
दोनों भाईयो की वार्ता
जब
पुरषोत्तम लाल चोपड़ा क्षत्रिय
वृद्ध हो गए तो उनसे श्रीलाडिलेशजी
की सेवा उचित रूप से नहीं होती
थी|
श्रीलाडिलेशजी
ने श्रीगुसांईजी को आज्ञा
की-"
अब
मेरी सेवा मथुरामल और हरजीमाल
को करने की आज्ञा दो|"
श्रीगुसांईजी
ने श्रीठाकुरजी की आज्ञा का
पालन करते हुए श्रीलाडिलेशजी
की सेवा इन दोनों भाईयो के
माथे पधरा दी|
ये
दोनों भाई श्रीलाडिलेशजी की
सेवा बहुत प्रीति से करते थे|
श्रीलाडिलेशजी
भी बालक की तरह इन दोनों भाईयो
से इच्छित पदार्थ झगड़ कर लेते
थे|
दोनों
भाई श्रीलाडिलेशजी को बहुत
प्रसन्न रखते थे|
वे
वैसा ही करते थे जिससे बालक
का मन उदास न हो|
जिनका
अन्तिम जन्म होता है,
वे
ही ऐसी वृति प्राप्त कर पाते
है|
वे
दोनों भाई श्रीगुसांईजी के
ऐसे कृपा पात्र थे जिन्होंने
श्रीलाडिलेशजी को मन-क्रम-वचन
से प्रसन्न कर लिया था|
।जय
श्री कृष्ण।
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