Monday, February 8, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Venidas Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १०५ )श्रीगुसांईजी के सेवक वेणीदास की वार्ता

वेणीदास पूर्व देश वासी वैष्णव मण्डल के साथ श्रीगोकुल में आए| यहाँ उन्होंने श्रीगुसांईजी के दर्शन किए| उन्हें श्रीगुसांईजी के दर्शन कोटि कन्दर्प लावण्य पूर्ण पुरषोत्तम के रूप में हुए| वेणीदास ने विचार किया की इनके शरण में जाने से बहुत अच्छा होगा । यह विचार आते ही वे श्रीगुसांईजी के सेवक हो गए| उन्होंने श्रीनवनीतप्रियजी की दर्शन किये तो उन्हें भगवत स्वरूप का ज्ञान हुआ| जब उन्होंने श्रीनाथजी के दर्शन के दर्शन किए तो उन्हें देहानुशंधान ही नहीं रहा| उन्हें दो घडी बाद देहानुशंधान हुआ, तब श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की - " श्रीनाथजी के दर्शन किए|" वेणीदास ने विनय पूर्वक निवेदन किया - " आपकी कृपा से श्रीनाथजी ने मुझे दर्शन दिए| जीव की सामथ्य कहाँ है कि वह श्रीनाथजी के दर्शन कर सके| श्रीनाथजी आपके वश में है| आपकी इच्छा हो तो ही श्रीनाथजी दर्शन देते है|" वेणीदास के विनय करने पर श्रीगुसांईजी ने उनके लिए श्रीठाकुरजी की सेवा पधराई| वे श्रीगुसांईजी के पास रहकर पुष्टि मार्ग की रीति को सीख सके| एक दिन वेणीदास श्रीगुसांईजी से आज्ञा लेकर अपने देश के लिए चल दिए| रास्ते में एक दिन बरसात बहुत पड़ी| वे गाँव में स्थान तलाशने के लिए चले| एक बड़ी जगह पर वेणीदास उतरे| वहाँ उन्होंने श्रीठाकुरजी की सेवा की और महाप्रसाद लिया| रात्रि के समय जब वेणीदास भगवतवार्ता कर चुके तो उन्हने एक प्रेत खड़ा हुआ दिखाई दिया| वेणीदास ने उससे पूछा - " तुम कौन हो?" उसने कहा - " मै यहाँ का प्रेत हूँ| यहाँ जो भी कोई आकर उतरता है, वह वापस लौटकर जीवित नहीं जाता है| परन्तु तेरे ऊपर मेरा देव नहीं चल पा रहा है|" वेणीदास को प्रेत पर दया आई , उसके ऊपर जल के छींटे मारे तो उसकी प्रेतयोनि छूट गई| उसकी दिव्य देह हो गई| वेणीदास से प्रेत ने हाथ जोड़कर कहा - " तू धन्य है, तूने मेरी प्रेत योनि छुड़ा दी है| आब मै तेरी कृपा से वैकुण्ठ में जाऊँगा| मेरी प्रेतयोनि को छुड़ाने की किसी में भी सामथ्य नहीं थी| इतना कहकर तथा वेणीदास को दण्डवत करके वह प्रेत वैकुण्ठ में चला गया| वेणीदास अपने देश में जाकर भलीभांति से श्रीठाकुरजी की सेवा करने लगे| वेणीदास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे|

|जय श्री कृष्णा|


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1 comments:

  1. जय श्री कृष्णा।यमुनाजी की जै।महाप्रभुजी प्यारे की जै।गोसाईं जी परम दयाल की जै।गुरदेवजी प्यारे की जै।

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