Wednesday, January 27, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Dokari Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव १०१)श्रीगुसांईजी के सेवक एक डोकरी की वार्ता

वह डोकरी राजनगर में रहती थी और श्रीगुसांईजी ने उसके माथे श्रीठाकुरजी पधरा दिये थे| वह भली भाँति सेवा करती थी| डोकरी बड़ी निष्किंचन थी, उसके घर में चमचा नहीं था इस कारण सामग्री ठण्डी करके भोग धरती थी| एक दिन उस डोकरी ने सामग्री तैयार की और उसे ज्ञात हुआ कि श्रीगुसांईजी पधारे है, चमचा के अभाव में सामग्री को बिना ठण्डा किये ही, तप्त (ताती) सामग्री भोग धरी और एक दातुन समीप में रख दी और प्राथना की -" हे प्रभो, आप दातुन से सामग्री ठण्डी करके अरोंगेगे| मै श्रीगुसांईजी के दर्शन कर आउँ|" श्रीठाकुरजी की आज्ञा लेकर डोकरी श्रीगुसांईजी के दर्शन करने गई और वहाँ से दो चार वैष्णव उस डोकरी के साथ आए| उस डोकरी ने भोग सरा कर उन वैष्णवों को दर्शन कराए और अनवसर कर दिए| उन वैष्णवो ने इस डोकरी के यहाँ दातुन देखकर दातुन भोग धराने की प्रेरणा ली| वे वैष्णव अपने अपने घरों में गए तो किसी ने एक, किसी ने दो, किसी ने पाँच-सात और किसी- किसी ने तो सौ दातुन तक भोग में धराये| बहुत लोग दातुन भोग धराने लगे| दो चार दिन बाद किसी वैष्णव के यहाँ चाचा हरिवंशजी आए और दातुन भोग धरे देखे| उन्होंने पूछा-" श्रीठाकुरजी को दातुन क्यों भोग धराये  है?" उस वैष्णव ने कहा -" सभी वैष्णव दातुन भोग धरते है|" चाचाजी ने दातुन भोग धराने के बारे में पूछा| सभी ने कहा-" हमारे तो डोकरी के यहाँ दातुन भोग धरा देखा था तो हम भी धराने लग गए " चाचाजी ने उस डोकरी से पूछा- उसने कहा, हमारे घर चमचा नहीं था, मुझे दर्शनों  की जल्दी थी, मैने चमचा के स्थान पर एक  दातुन रख दी थी|" यह सुनकर श्रीगुसांईजी ने कहा-"  इस डोकरी ने तो परिस्थिति वश किया था, लेकिन तुमने तो देखा - देखी से कार्य किया| यह ठीक नहीं है| वैष्णव को सेवा की रीती पूछकर और समझकर करनी चाहिए| जो पूछकर और समझकर सेवा करता है उसकी सेवा फलती है|" डोकरी ऐसी कृपा पात्र थी|

।जय श्री कृष्ण।


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