Monday, April 13, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Bangali Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - २३)श्रीगुसांईजी के सेवक एक बंगाली की वार्ता






एक गौडिया वैष्णव वृन्दावन में रहता था और मजदूरी करता था| एक बार श्रीगुसांईजी वृन्दावन पधारे तो वह श्रीगुसांईजी का सेवक हुआ| उसको वैष्णव समझकर लोग मजदूरी भी अधिक देते थे| उसने विचार किया कि वैष्णव के कारण मजदूरी अधिक मिलती है इस प्रकार धर्म बेचकर खाना अच्छी बात नहीं है शास्त्रों में लिखा है- भगवान का नाम लेकर जो भिक्षा मागते है, उनको भिक्षा देने वाला नरक में जाता है| अतः धर्म दिखाकर भिक्षा और रोजगार नहीं करना चाहिए| अतः वह वैष्णव जब भिक्षा और मजदूरी करने जाता तो तिलक-मुद्रा को धोकर और कण्ठी को छुपाकर रखता था| इस प्रकारधर्म गुप्त रखकर मजदूरी करता था| एक दिन वह तिलक धोना भूल गया और मजदूरी करने चला गया| उसी समय श्रीठाकुरजी ने याद दिलाया-" तिलक तो धोया ही नहीं है| तिलक को धोले, तब मजदूरी पर जा|" यह सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ| श्रीठाकुरजी उससे नित्य बातें करते थे| उसे सभी प्रकार का सुख देते थे| वह गौडिया भी श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था|


।जय श्री कृष्ण। 
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