२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ७७ ) श्री गुसाईजी के सेवक रामदास खंभात की वार्ता
एक बार श्री गुसांईजी गुजरात पधारे, वहाँ रामदास जी को नाम निवेदन कराया। फिर रामदास जी ने गुसांईजी की पूछा - "अब क्या आज्ञा है ?" श्री गुसांईजी ने कहा - "अष्टाक्षर तथा पंचाक्षर का जप करो| " सो रामदास जी जप करने लग गए. एक दिन श्री गोवेर्धन नाथ जीने उन्हें दर्शन दिए ओर कहा - " तुम ब्रज में जाकर हमारी सेवा करो " तब रामदासजी ब्रज में जाकर श्री गुसांईजीकी आज्ञा लेकर श्रीनाथजी के शाकघर की सेवा करने लगे. श्री नाथजी गुलाल कुंड पर पधारे ओर रामदास जी से कह गए के तुम शीतल सामग्री ले कर गुलाल कुंड पर आ जाना।" रामदासजी निर्देश अनुसार सामग्री लेकर वह गए श्रीनाथजी ने सामग्री अरोगी ओर सब सखा मंडल को बाँट दी. इस समस्त लीला के दर्शन श्री रामदास जी को हुए. रामदासजी धीरे धीरे भोग के दर्शन के समय तक आकर पहुचे। मन में बहुत डरे हुए थे की श्री गुसांईजी क्या कहेंगे ?" उसी समय श्रीनाथजी ने गुसांईजी से कहा - " रामदासजी मेरे संग गये थे, अतः उनसे तुम कुछ भी मत कहो. " श्री गुसांईजी ने रामदासजी से पूछा - " श्रीनाथजी तुम्हे अपने संग जहाँ ले जाये तुम जाया करो। तुम्हारे बड़े भाग्य है. शाकघर में हम दूसरा आदमी रख लेंगे ताकि तुमको अवकाश मिल सके. तुम्हे जब भी अवसर मिले तुम शाकघर में सेवा करो." फिर एकदिन श्रीनाथी रामदास जी को कदमखंडी पर ले गए. वहाँ श्रीनाथजी ने रास किया और गोविन्द स्वामी ने कीर्तन गाया। श्यामदास ने मृदंग बजाय ऐसी अनेक लीलाओ के दर्शन श्रीनाथजी ने रामदासजी को करवाए। वे रामदास ऐसे कृपा पात्र अष्टाक्षर मंत्र जप करके ही हुए. अष्टाक्षर मंत्र का जप करते हुए रामदासजी को लीलाओ के दर्शन पुष्टि मार्ग का महत्व प्रदर्शन के लिए कराये ही जो कोई वैष्णव अष्टाक्षर मंत्र का जप करेंगे उनके संपूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जायेंगे।
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जय श्री कृष्ण|
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