२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ११७ ) श्री गुसाँईजी के सेवक राजा जोतसिंह की वार्ता
राजा जोतसिंह के पुरोहित का बीटा भगवद धर्म में कुशल महापण्डित था | वह श्री गुसांईजी का सेवक था ओर भगवत्लीला का अनुभव करता था. वह एक दिन राजा के पास गया. राजा रसाई देवी का भक्त था उस पुरोहित ने राजा से कहा - " पंढरपुर में ऐसी हजारो देवियां जल बहरति हे | " उस राजा ने कहा -"मुझे दर्शन करा सकते हो? " उसने स्वीकुर्ति दी और राजा को लेकर पण्ढरपुर गया. वंहा उसने श्री विट्ठलनाथजी के दर्शन किये लेकिन कोई वैभव उसे दिखाई नहीं दिया। उसने पुरोहित से कहा " मेरी देवी के वैभव का तीसरा भाग भी यहाँ नहीं हे. तुम मुझे यहाँ क्यों ले ए हो? " उस पुरोहित ने श्री गुसाँईजी की कृपा से उस राजा को दिव्या दृष्टि प्रदान की. उसे श्री विट्ठलनाथजी के वैभव के दर्शन होने लगे. वहाँ उसने अनेक प्रकार की रचना देखि। रत्नजड़ित स्तम्भों ओर किवाड़ों के दर्शन हुए. अनेक मनुष्यो को वह सेवा करते हुए देखा राजा देखकर विस्मित हो गया उसने पुरोहित के पैर पकड़ लिए. पुरोहित उसे हाथ पकड़कर दूसरी और ले गया. वह उसने हजारो स्त्रियों को जल भरते हुए देखा। अब स्त्रियों के पीछे उसे रसाई जलभर कर अति दिखाई दी। राजा ने उस देवी से पूछा - " ये क्या बात हे ?" उस देवी ने कहा - "में तो सेवा कर रही हु. तुजे जो कुछ भी पूछना हे, अपने पुरोहित से पूछो ". यह कहकर देवी चली गई राजा के पुरोहित ने दिव्य दृष्टि खिंच ली. अब उसे साधारण रूप से वैसे ही श्री विट्ठलनाथजी के दर्शन हुए, जैसे उसने सर्वप्रथम आकर दर्शन किये थे. राजा ने हाथ जोड़कर पुरोहित से कहा - " मै अडेल में श्री गुसाँईजी का सेवक हुआ हु? उनकी सेवा से मुझे असाधारण सुख प्राप्त हुआ हे तुम भी श्री गुसांईजीके शरण में जाओ तुम्हारा मनोरथ सफल होगा". तब राजा अपनेपुरोहित को साथ लेकर अडेल गया. ओर वंहा श्री गुसाँईजी का सेवक हुआ. श्री गुसाँईजी ने उसे नाम निवेदन कराया। श्री ठाकुर जी पधारा कर ओर ब्रज में श्रीनाथजी के दर्शन करके, राजा अपने गाँव में आया. अपने पुरोहित को अपने पास में रखकर सेवा कि रीती को सीखा। स्नेहपूर्वक श्री ठाकुरजी की सेवा करने लगे श्री गुसाँईजी की कृपा से थोड़े ही दिनों में ठाकुरजी सानुभव जताने लगे वह राजा पुरोहित के संग से भगवदीय हुआ.
| जय श्री कृष्ण|
| जय श्री कृष्ण|
Jai Shree Krishna.
ReplyDelete