Tuesday, September 12, 2017

Shri Gusaiji Ke Sevak Shyamdas Aanjna Kanubi ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव-२०६ श्रीगुसांईजी के सेवक श्यामदास आंजना कनुबी की वार्ता


श्यामदास कुनबी गुजरात में रहते थे | श्रीगुसांईजी जब द्वारिका पधारे तो वह उनका शिष्य हुआ | श्यामदास कुछ दिनों के बाद श्रीगोकुल गए| वहाँ उसने श्रीनवनीतप्रियजी के दर्शन किए | श्यामदास,श्रीगुसांईजी के संग गोपालपुर गए| श्यामदास का मन गोपालपुर में बहुत लगा| उसने श्रीगुसांईजी से प्रार्थना की- "में जीवन भर यहाँ रहना चाहता हूं | अत: मुजको कुछ सेवा बताओ|" श्रीगुसांईजी ने श्यामदास को फूल घर की सेवा प्रदान की | श्यामदास ने श्रीगुसांईजी से प्रार्थना की - "महाराज,मुझे फूलों का स्वरूप समजावे|" श्रीगुसांईजी ने आगन की- "ब्रजभक्त गोपीजन के चित्त हैं, वे पुष्प होकर श्रीठाकुरजी का अंग स्पर्श करते है |" यह सुनकर श्यामदास बहुत प्रसन्न हुआ | वे फूलों को ब्रजभक्तों का हदय समज कर कभी भी उन्हें पैर नहीं लगाते थे | हाथ धोकर ही उन्हें छूते थे | ये कुम्हला ण जाँए,ऐसा यत्न करते रहते थे | एक दिन उसने श्रीगुसांईजी से पूछा- यदि फूल व्रजभक्तों के चित्त हैं तो इन्हें सुई क्यों चुभाई जाती हैं? श्रीगुसांईजी ने कहा - "सुई तो वर्जभक्तो के चित्त में भगवत सम्बन्ध की सूचना करती हैं वे यह समजती हैं की भगवत सम्बंध हमें सूचन हुआ | अब प्रभु शीध्र ही चित्त को स्वीकार (अंगीकार) करेंगे | यह सुनकर श्यामदास का समस्त सन्देह दूर हो गया | एक दिन श्यामदास ने फूल घर में व्रजभक्तों के यूथों के यूथ देखे | श्यामदास ने उन्हें देखकर पूछा- "आप लोग कौन है ? मैं आपको पहचानता नहीं हूँ|" वर्जभक्तो ने कहा - " तुम जो पुष्पों की माला श्रीठाकुरजी को अंगीकार कराते हो, यह हमारा ही स्वरूप है | हम तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें दर्शन दे रहे हैं| तू जो चाहता है, सो माँग ले|" तब श्यामदास ने हाथ जोड़कर कहा- "आप मुज पर ऐसी कृपा करो की मेरा छीत कभी भी इस सेवा से विरत न हो | व्रजभक्तों ने कहा- "अस्तु (ऐसा ही होगा)|"जिनका अन्तिम जन्म होता है, उनसे प्रभु कभी भी अंतर नहीं मानते हैं| ऐसे ही जीवों के लिए यह मार्ग प्रगट हुआ है | यह सुनकर श्यामदास बहुत प्रसन्न हुआ | वह श्यामदास श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था|

                                                                    | जय श्री कृष्ण|
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