२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - १६३ ) काशी के एक नागर ब्राह्मण की वार्ता
श्री गुँसाईजी जी के प्राक्ट्य के समय श्रीनाथजी अनेक प्रकार के चरित्र ब्रज में करे. एक कशी को नगर ब्राह्मण हक्तो वाको विवाह बड़नगर में भयो सो वह ब्राह्मण अपनी बहु को लेके कशी जाट हतो सो वह स्री श्री गुसाईजी की सेवक हटी तब पेड़ में श्री माथुरजी आये तब स्री ने कह्यो यहाँ पे श्री गोवर्धन पर्वत के ऊपर श्रीनाथजी विराजत है हमारे कुल देवता हे तट उनके दर्शन करने चलो यह सुनके यद्यपि वह सेवक न हतो परन्तु भगवान दर्शन की इच्छा ते याके मन में आई सो दर्शन को गया तो भोग के दर्शन किया ता समय व स्री ने श्रीनाथजी को विनती किनी जो महाराज मेरो हस्त श्री गुसाईजी आपकी कानते ग्रहण किया हे ताते मो सेवक को यह दू :सड़ छुड़ाओ और अपने निकट रखो. यह विनती सुनके श्रीनाथजी जो आपके श्रीहस्त सो गहिको वाको सदेहासो नित्य लीला में अद्दिकार तब वह ब्राह्मण मरिवे पड़्यो तब श्री गुंसाईजी अपने वाको नित्य लीला के दर्शन करवाए तब गोपिका मंडल में व स्त्री को देखो तब व नगर को संदेह मिट्यो फिर वह गुसाईजी के सेवक भयो ओर नित्य लीला में प्राप्त भयो फिर वाको गांठयौंली में जन्म भयो ओर श्याम पखावजी नाम कर प्रसिद्ध भयो बाकि एक बेटी ललिता नमक भयी सो बिन बहु अच्छी बजावे ओर श्याम मंडल बहुत सुन्दर बजावे टेक सूनवे के लिए श्रीनाथजी एक दिन चार प्रहार रात्रि जगे प्रातः कल शंखनाद भयो तब निज मंदिर में पधारे तब जगवती विरिया श्रीगुसाईजी लालनेत्र देख के श्रीजी से पूछा बाबा आज रात्रि जागरण कहा भयो तब श्रीनाथजी अग्ना किये आज गांठयौंली में ललिता ने बिन बजाई ओर श्याम ने भृदंग बजाय तब बड़ो रंग भयो यह सुनके श्री गुसाईजी श्याम पखावजी ओर ललिता को बुलायके नाम सुन्यो ओर श्रीजी की सेवा में तत्पर कइने जहा जहा श्रीनाथजी क्रीड़ा करे तहा तहा अष्टछाप गावे ओर ललिता ओर श्याम बजावे।
|
जय श्री कृष्ण|
0 comments:
Post a Comment