२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - १६२ ) श्रीगुसांईजी की सेवक शकुनज्ञ वैष्णव की वार्ता
गुजराती वैष्णव अपने देश से चलकर श्रीगोकुल में पहुंचकर श्रीगुसांईजी का सेवक हुआ| वह वैष्णव शकुनों का जानकार था अत: जो भी कार्य करता था, वह शकुन देखकर ही करता था| एक दिन श्रीगुसांईजी के समक्ष शकुन की बात चल पड़ी तो श्रीगुसांईजी ने स्पष्ट किया - "भगवत दर्शन के सामने शकुन का क्या महत्त्व है|" उन्होंने उस समय श्रीसूरदासजी का एक कीर्तन का पद कहा -
पद- मिली है गोपाल सोई दिन नीको ।
जोतिष निगम पुराण बड़े ठग, जानों फॉसीजी को ॥१||
जे बूझै तो उत्तर दें हूँ, बिन बूझै मत फिको ।
कमल मीन दादुर युंतर शत, सब धन परत अमीको ॥२||
भद्रा भली भरणी भयहरणी, चलत मेघ अरु छिको ।
अपने ठोर सबहि ग्रह नीके, हरण भयो क्यूं सी को ॥३||
सून मूढ़ मधुकर ब्रज आयो, ले अपयश को टीको ।
सूर जहाँ लौं नेम धर्म व्रत, सो प्रेमी कौड़ी को ॥४||
यह पद श्रीगुसांईजी ने अपनी श्रीमुख से सुनाया| उस वैष्णव को तब निश्चय हुआ की आज के बाद कभी भी शकुन नहीं देखूँगा| उस वैष्णव को श्रीगुसांईजी के वचनों पर ऐसा पूर्ण विश्वास था|
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जय श्री कृष्ण|
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