२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव- १४७)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक पटेल राजनगर वाला
की वार्ता
वह
पटेल वैष्णव राजनगर में रहता
था। उस पटेल के दो बेटे थे और
एक स्त्री थी|
बड़े
बेटे की दो स्त्री थी और छोटे
बेटे की एक स्त्री थी|
इस
प्रकार सात जिव श्रीगुसांईजी
के शरणागत हुए। श्रीठाकुरजी
पधराकर ये सेवा करने लगे|
इनमे
छ:
प्राणी
तो भगवदासक्त थे और बड़ा बेटा
लौकिकासक्त था। वह बड़ा बेटा
भगवत सम्बंधी कार्य नहीं करता
था। लौकिक में वह तद्रूप हो
रहा था। एक दिन पटेल वैष्णव
ने कहा-
"मेरे
बड़े बेटे का मन प्रभु में लग
जाए तो बहुत अच्छा रहे|
उस
वैष्णव ने कहा-
जब
श्रीगुसांईजी की कृपा होगी
तभी यह संभव होगा। एक दिन वह
वैष्णव उस पटेल की दुकान पर
गया । उसका बड़ा बेटा चौपड़ा
(बही
खाते)
लिख
रहा था,
उस
वैष्णव से बोला ही नहीं|
वह
वैष्णव दो-तिन
घडी तक बैठा रहा लेकिन वह कुछ
भी नहीं बोला|
थोड़ी
ही देर बाद वह वैष्णव उठा और
उसने उस पटेल के बेटा के कान
में कहा-"
उठ
जा ,
चेत
जा ,तिन
दिन पीछे तेरी मृत्यु होने
वाली है|"
यह
कहकर वैष्णव तो चला गया|
उस
पटेल के बेटा का मन उदास हो
गया । उसका खाना पीना छूट गया|
दिन
भर उदास रहने लगा|
वैधो
की औषधि भी व्यर्थ हो गई । उस
लड़के ने उस वैष्णव को बुलाने
के लिए किसी को भेजा वैष्णव
आनाकानी कर गया । दो बार बुलाने
पर वह वैष्णव आया|
उसने
उसकी नाड़ी देखकर कहा-"अब
दो घड़ी शेष है,
तेरी
मृत्यु होने वाली हे ,
यदि
कोई उपाय कर सकता है तो कर ले|"
उसने
पूछा -"क्या
उपाय करू?"
उसने
कहा-"
यदि
कोई तुझे अपनी शेष आयु में से
उम्र प्रदान कर दे तो तेरी
रक्षा हो सकती है|"
उसने
सभी से प्रार्थना की लेकिन
किसी ने भी अपनी आयु में से
आयु देना स्वीकार नहीं किया|
अन्त
में वैष्णव ने कहा-"भगवत
कथा में चित लगाओगे तो भी पल
पल आयु आगे से आगे बढ़ती रहेगी|"
उसने
इसे स्वीकार किया|
वैष्णव
ने उसे आशीर्वाद प्रदान किया|
वह
भगवत कथा में मग्न रहने लगा|
उसकी
मृत्यु उस समय टल गई|
अब
तो उसकी वृत्ति लौकिक से हटकर
भगवत सेवा व सतसंग में रम गई|
वह
पटेल वैष्णव एस कृपा पात्र
था जिसके प्रयास से उसके बेटे
ने लौकिक आसक्ति का त्याग कर
उससे भी दस गुनी भगवद आसक्ति
प्राप्त की ।
|जय श्री कृष्णा|
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