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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव- १५५)श्रीगुसांईजी के सेवक भाईला कोठरी की वार्ता
जब
श्रीगुसांईजी द्वारिका पधारते
थे तो भाईला कोठारी के घर ठहरते
थे और जब भाईला कोठारी का मन
उद्विग्न होता था अथवा
श्रीगुसांईजी के दर्शन करने
के लिए लालायित होता था तो
श्रीगुसांईजी पधारते और दर्शन
देतें थे|
उसके
घर में ऐसा चमत्कार था की जो
उनके घर में आता था श्रीगुसांईजी
की कृपा से उसकी बुद्धि निर्मल
हो जाती थी|
उस
देश में एक ब्राह्मणी श्रीगुसांईजी
की सेविका हुई,
उसने
अपना सम्पूर्ण द्रव्य
श्रीगुसांईजी की कृपा से उसकी
बुद्धि निर्मल हो जाती थी|
उस
देश में एक ब्राह्मणी श्रीगुसांईजी
की सेविका हुई,
उसने
अपना सम्पूर्ण द्रव्य श्रीगुसांईजी
को भेट कर दिया । उसके पड़ोस
में एक चुगलखोर ब्राह्मण रहता
था|
उसने
धोलका में लाछबाई रानी से कहा
-"
गोकुल
से एक फकीर आया है जो कोठारी
के घर में उतरा है,
वह
सब लोगो को ठगता फिरता है|"
यह
सुनकर लाछबाई रानी ने अपने
प्रधान बाज बहादुर को राजनगर
भेजा और कहा -"कोठारी
के घर आकर इस की वस्तु स्थिति
से अवगत कराओ|"
बाज
बहादुर राजनगर में कोठारी
के घर गया|
उस
समय दस -
पॉँच
गिरासिया राजपूत श्रीगुसांईजी
के दर्शन के लिए बैठे थे|
बाज
बहादुर भी वहाँ जाकर बैठ गया|
श्रीगुसांईजी
पधारे तो बाज बहादुर ने सभी
के साथ मिलकर दण्डवत की|
उसे
साक्षात् कन्हैयालाल के दर्शन
हुए|
बाज
बहादुर ने मन में विचार किया
कि लोग वृथा ही मुझे इनसे लड़ाना
चाहते है। उसने मान लिया की
ये तो काल के भी काल है अत:
बहुत
ही दर गया|
उसने
श्रीगुसांईजी से जाने की आज्ञा
माँगी|
श्रीगुसांईजी
ने उसे चलते समय एक बीड़ा दिया|
तब
बाज बहादुर ने विनती करके ऐसी
वस्तु की माँग की जिसे सिर पर
धर कर घूमता फिरे|
श्रीगुसांईजी
ने उसे एक सुपारी दी|
वह
सुपारी को पाग के एक खूंट(कोने)
में
बाँध कर सिर पर धारण किए रहता
था|
उसने
उन्हें ईश्वर समझकर उनसे विनय
पूर्वक पूछा -
" महाराज,
मेह(वर्षा)
कब
बरसेगा?"
श्रीगुसांईजी
ने कहा -
" आज
ही मेह बरसेगा|"
यह
सुनकर वह अपने घर आ गया|
लेकिन
रास्ते में ऐसी बरसात आई की
वह सारा ही भीग गया|
तब
तो बाज बहादुर को यह विश्वास
हो गया की ये तो साक्षात् ईश्वर
ही है|
चुगलखोर
ब्राह्मण को बाजबहादुर ने
पकड़ कर मँगवा लिया ताकि ऐसे
दुष्ट को प्राणदण्ड दिया जा
सके|
श्रीगुसांईजी
ने जब सारा वृतान्त सुना तो
उन्होंने समाचार भेजा की इस
ब्राह्मण को मार मत देना|
बाज
बहादुर ने उस ब्राह्मण से कहा
-"
कभी
किसी की चुगली मत करना|"
यह
उससे लिखवाकर भी ले लिया और
उसे श्रीगुसांईजी के पास भेज
दिया|
-" महाराज,
में
तो आप की कृपा से बच सकता हुँ|
अत:
मुझे
शरण में लेकर अपना सेवक बना
लो|
उसकी
विनती सुनकर उसे श्रीगुसांईजी
ने शरण में स्वीकार किया|
भाईला
कोठारी ऐसे कृपा पात्र थे की
जो उनके घर में जाता था तो उसकी
बुध्धि निर्मल हो जाती थी|
|जय
श्री कृष्णा|
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