Wednesday, June 8, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Virkt Vaishnav Ki Varta



२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१४९)श्रीगुसांईजी के सेवक विरक्त वैष्णव की वार्ता

श्रीगुसांईजी द्वारका पधारे और रास्ते में वह विरक्त वैष्णव भी श्रीगुसांईजी के साथ मिल कर चल दिया। द्वारका से होकर वह श्रीगोकुल गया, वहाँ (गोकुल में) जीवन पर्यन्त रहा। वह श्रीनाथजी की सेवा शुद्ध चित से करता था। जब भी कही भूल होती थी तो नवनीतप्रियजी उसे सीखते थे| वह विरक्त वैष्णव श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था, जिसके साथ श्रीनवनितप्रियजी बालभाव से खेलते थे|
|जय श्री कृष्णा|
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