Monday, June 22, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Bhaiya Rup Murari Kshtriy Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ४३)श्रीगुसांईजी के सेवक भैया रूप मुरारी क्षत्रिय की वार्ता

एक दिन श्रीगुसांईजी गोविन्द कुण्ड के ऊपर संध्या- वन्दन कर रहे थे। भैया रूप मुरारी वहाँ शिकार करते हुए आ गए। उनके एक हाथ में बाज था। उन्होंने श्रीगुसांईजी को दूर से ही देखा। उसे साक्षात् पूर्ण पुरषोत्तम के दर्शन हुए । उसने शिकार को छोड़ दिया। श्रीगुसांईजी के दर्शन करके बोला-" महाराज, मै तो निध् कर्म करता हूँ ।" श्रीगुसांईजी ने कहा-" जब जाग जाए तभी सवार (प्रातःकाल) मान लेना चाहिए।" यह सुनकर भैया रूपमुरारी श्रीगुसांईजी के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़े हो गए। श्रीगुसांईजी की आज्ञा के अनुसार उसने स्नान किया, तब श्रीगुसांईजी ने उसे नाम सुनाया। उसे श्रीनाथजी के सन्निधान में समपण कराया। भोजन करके महाप्रसाद की पत्तल धराई । भैया रूप मुरारी ने महाप्रसाद लिया। फिर एक दिन भैया रूपमुरारी ने श्रीगुसांईजी से पूछा-" महाराज मेरे द्वारा किये गए निध कर्म मुझे स्मरण आते हैं अतः मै आपके चरण स्पर्श करने में बहुत संकोच करता हूँ ।" इस पर श्रीगुसांईजी ने कहा-" अब तुम वैष्णव हो गए हो, तुम्हारा नवीन जन्म हो गया है। तुम नित्य स्नान करके अपरस में रहकर चरण- स्पर्श कर सकते हो।" तब से भैया रूपमुरारी श्रीगुसांईजी के चरण स्पर्श करने लगे। ये भैया रूपमुरारी ऐसे कृपा पात्र थे कि जिनका मन दर्शन मात्र से ही प्रभु के चर्णारविन्दो में लग गाया था।

।जय श्री कृष्ण।


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