Thursday, April 27, 2017

Shri Gusainji Ke Sevak Teen Vaishnv Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता 
(वैष्णव - २२१ श्रीगुसांईजी के सेवक तीन वैष्णवों की वार्ता


एक साहूकार के बेटा का नाम मोहनदास और वजीर की बेटी का नाम गोपी बाई था| एक निहालचंद नामक बनिया का बेटा था| ये तीनों एक ही विद्यालय में पढ़ते थे| एक समय श्रीगुसांईजी उस गाँव में पधारे, सो वे तीनों श्रीगुसांईजी के सेवक हुए| मोहनदास और गोपीबाई का विशेष स्नेह हुआ| तीनों जनें श्रीठाकुरजी पधरा कर सेवा करने लगे| मोहनदास प्रतिदिन गोपीबाई के घर जाकर भगवद् वार्ता बाँचते थे| जिस दिन मोहनदास नहीं पहुंचते उस दिन गोपीबाई प्रसाद नहीं लेती थी| एक दिन राज - पुरुषों ने मोहनदास को गोपीबाई के घर जाते हुए देखा| उन्होंने राजा को सूचना दी| राजा वेष बदलकर गश्त के लिए निकला| उसने छिपकर मोहनदास और गोपीबाई की चेष्टाओं को देखा| राजा को निश्चय हो गया कि गोपीबाई और मोहनदास के प्रेम के कोई विकार नहीं है| लेकिन लोगों में इनके बारे में चर्चा होती है अत: इस चर्चा को बन्द करना चाहिए| अत: राजा ने मोहनदास को पकड़ लिया| उसने कहा - "चलो दरबार में चल कर तुम्हारे बारे में विचार किया जाएगा|" जब दरबार में मोहनदास को उपस्थित किया तो राजा ने कहा - "या तो तुम अपनी जमानत दो, अथवा रात भर कैद में बन्द रहो|" मोहनदास ने माँ - बाप के पास समाचार भेजा| उन्होंने जमानत देने से मना कर दिया| उसी समय उसका मित्र निहालचन्द आया और उसने उसकी जमानत दी| राजा ने रात के लिए उसे छोड़ दिया| दूसरे दिन पून: उसे दरबार में उपस्थित किया गया| राजा ने आदेश दिया - "इसे गाँव के बहार ले जाकर मार दो| लेकिन मारना तब जब मैं वहाँ पहुँच कर तुम्हें मारने के लिए आदेश दूँ| राजा की आज्ञा पाकर राजसेवक उसे गाँव के बहार ले गए| वहाँ उसे देखने के लिए बहुत भीड़ इकठ्ठी हो गई| उस समय गोपीबाई पुरुष वेष में घोड़े पर बैठकर आई| उसने तलवार खींच कर राजपुरुषों से मोहनदास को छुड़ा लिया और घोड़े पर चढ़ा लिया| उसी समय वहाँ राजा आ गया| उसने गोपीबाई को पहचान लिया| राजा ने राजपुरुषों को रोककर कहा - "इन्हें जाने दो, इनसे कुछ भी मत कहो|" राजा ने वजीर से कहा - "यह तेरी बेटी है| मैंने इसकी परीक्षा कर ली है| इसमें कोई भी विकार नहीं है| ये दोनों ही निर्विकार होकर भगवन्नाम लेते हैं| आप इन दोनों का विवाह कर दो तो अधिक अच्छा रहे| राजा की बात गोपीबाई और मोहनदास सुन रहे थे| उन्होंने वजीर से कहा - "हम दोनों का प्रेम भाई - बहिन का पवित्र प्रेम है| हम आपस में विवाह नहीं करेंगे| यह सुनकर वजीर बहुत प्रसन्न हुआ| उसने कहा - "तुम्हारे पवित्र प्रेम का सम्मान करूँगा| तुम्हारा विवाह नहीं करूँगा| तुम्हारे आने जाने पर प्रतिबंध भी नहीं करूँगा| यदि कोई कुछ भी कहेगा, उसे उचित जवाब दूँगा|" ये तीनो ही अपनी टेक के वैष्णव थे, जिन्होनें जीवन उत्सर्ग कारण ऑटो स्वीकार कर लिया, लेकिन स्नेह नही छोड़ा| मित्र निहालचन्द ने राजदरबार में जमानत देकर मित्र धर्म का निर्वाह किया| मोहनदास और गोपी बाई ने पवित्र वैष्णव धर्म की रक्षा करते हुए भाई - बहिन के सम्बंधों का निर्विकार रहकर पालन किया|


                                                                    | जय श्री कृष्ण|
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