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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
- १०४ )श्रीगुसांईजी
के सेवक एक बनिया की वार्ता
वह बनिया -
वैष्णव गुजरात में
रहकर भली भाँती श्रीठाकुरजी
की सेवा करता था| जो
भी वैष्णव आता था, उसकी
सेवा भी भली भाँती से करता था|
उसके घर में भगवद्
वार्ता भी होती थी| गाँव
में एक देवी का मन्दिर था,
सो देवी भी भगवद् वार्ता
सुनने आती थी लेकिन उसे कोई
देख नहीं पाता था| केवल
यह वैष्णव ही उन्हें देख पाता
था| एक दिन उस वैष्णव
के घर में बहुत से वैष्णव आए|
वर्षा अधिक होने क
कारण सारा ईंधन भीग गया था|
रात बहुत हो गयी थी|
वह वैष्णव रात्रि में
लकड़ी लेने क लिए चला| रास्ते
में देवी का मंदिर मिला|
देवी मंदिर क दरवाजे
पर बाहर निकलकर खड़ी थी|
देवी ने पूछा - "वैष्णव
इतनी रात्रि में कहाँ जाते
हो?" उस वैष्णव ने
कहा - "लकड़ी लेने
को जा रहा हूं|" देवी
ने कहा - "अंधेरी
रात और वर्षा, ऐसे
समय तुम्हें लड़की कहाँ मिलेगी?"
मेरे मंदिर के किवाड़
बहुत पुराने व जीर्ण है,
इनमें से एक को उतार
कर ले जाओ|" उस
वैष्णव ने एक किवाड़ उतार लिया
और उसके टुकड़े- टुकड़े
करके ले गया| उस ईंधन
से काम चलाया| सामग्री
तैयार की और वैष्णवों को
महाप्रसाद कराया| उस
वैषणव के पड़ौस में एक ब्राह्मण
का घर था| उसकी
ब्राह्मणी ने वैष्णव की पत्नी
से पुछा - "तुम्हारे
लकड़ी व छाँणे (उपले)
तो सब भीग गए थे, तुम
सामग्री पकाने के लिए लकड़ी
कहाँ से लाए| वैष्णव
की स्त्री ने कहा - "हम
तो देवी के मंदिर का किवाड़
उतार कर लाए थे|" दुसरे
दिन उस ब्रह्माणी ने अपने पति
से कहा - "तुम भी
देवी के मंदिर का किवाड़ उतार
लाओ|" वह ब्राह्मण
भी रात्रि के समय उस देवी के
मंदिर के किवाड़ उतारने चला
गया|" उस ब्राह्मण
के हाथ उस किवाड़ से ऐसे चिपक
गए कि ब्राह्मण ने बहुत प्रयास
किया, लेकिन हाथ
नहीं छूटा| वह ब्राह्मण
बहुत दु:खी हुआ|
एक प्रहार तक तो सीधा
खड़ा रहा| बहुत देर
होने पर ब्राह्मणी उस ब्राह्मण
को ढूंढने गई| उसने
पति को इस स्थिति में देखा तो
वह उसके हाथों को किवाड़ से
दूर करने लगी तो वह भी किवाड़
से चिपक गई| अब तो
दोनों स्त्री पुरुष रोने लगे|
देवी की प्रार्थना
करने लगे| रात भर
रोते रहे| जब दो घड़ी
रात्रि शेष रही तो देवी ने कहा
- "तुम दोनों मेरे
दोनों किवाड़ नये चढ़वा देने
का संकल्प करो और तुम्हारे
पड़ौस में बनिया वैष्णव के
घर एक लकड़ियों का गट्ठा रोजाना
पहुंचना स्वीकार करो तो मैं
तुम्हें छोड़ दूँ| उन
दोनों स्वीकृति
दी तो उनके हाथ छूट गए| दोनों
स्त्री पुरुष खाली हाथ अपने
घर आ गए| उन्होंने
देवी के मंदिर में नविन किवाड़
चढ़वाए और उस बनिया वैष्णव
के घर प्रतिदिन लकड़ियों का
गट्ठा पहुंचने लगे| इस
प्रकार करते करते चतुर्मास
बीत गया और बनिया वैष्णव के
यहां लकड़ियों का बहुत ढेर
हो गया तो बनिया वैष्णव ने
उनसे लकड़ियां लाने को मना
कर दिया और कहा कि मैं देवीजी
को आपके मुक्त करने के लिए
निवेदन कर दूँगा| पश्चात्
उस बनिया वैष्णव ने देवी के
पास जाकर उन्हें मुक्त करने
की प्रार्थना की तो देवी ने
उन्हें मुक्त कर दिया| एक
दिन ब्राह्मण ने उस बनिया
वैष्णव से पुछा - "यह
देवी तुम्हारा कहना क्यों
मानती है?" बनिया
वैष्णव ने कहा - "वैष्णव
धर्म ऐसा है, जिसका
सभी देवी देवता आदर करते हैं|"
उस ब्राह्मण ने कहा
- "हमें भी वैष्णव
बना लो|" उस बनिया
वैष्णव ने उस ब्राह्मण को
श्रीगोकुल भेजा| वे
दोनों स्त्री पुरुष श्रीगोकुल
में जाकर श्रीगुसांईजी के
सेवक हुए| श्रीनाथजी
के दर्शन करके और सेवा पधराकर
पून: अपने देश में
आए| उस बनिया वैष्णव
के उपर श्रीगुसांईजी की ऐसी
कृपा थी| जिनसे
श्रीठाकुरजी भी बोलते थे,
वे ऐसे परम कृपापात्र
थे|
वार्ता सम्पूर्ण
Jai Shree Krishna.
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