Wednesday, February 22, 2017

Shri Gusaiji Ki Sevak Ek Vaishnav Mohandas Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव – १५५) श्रीगुसांईजी की सेवक एक वैष्णव मोहनदास की वार्ता 



वैष्णव मोहनदास गोपालपुर में रहते थे और गोविन्द कुण्ड पर नित्य स्नान करने जाते थे| ये गोपालपुर की ओर से श्रीगिरिराज पर चढ़कर गोविन्द कुण्ड की ओर उतरते थे| एक दिन उतार पर गोबर होने के कारण वैष्णव दूसरी तरफ उतरा| श्रीगुसांईजी ने उसे उतरते हुए देखा| श्रीगुसांईजी ने माथा हिलाया| मोहनदास ने श्रीगुसांईजी को दण्डवत करके माथा हिलाने का कारन पूछा| श्रीगुसांईजी ने कहा - "तुम श्रीगिरिराज पर बिना किसी कारण के पैरों से चढ़ते हो| तुम गिरिराज के महत्त्व को न समझकर ही इन्हें पैरों से खूंदते हो|" वैष्णव ने कहा - "महाराज, श्रीगिरिराज का क्या महत्त्व है? यह हमें समझानॆ की कृपा करें| श्रीगुसांईजी ने पद्मपुराण की कथा कही - "एक दिन श्रीठाकुरजी और नारदजी वन में खड़े थे| श्रीठाकुरजी ने नारदजी से कहा - "जल लाओ|" नारदजी जल लेने गए तो वन में एक सरोवर पर दो ऋिषयों को तपस्या करते हुए देखा और तालाब के समीप ही मनुष्य की अस्थियों के पर्वताकार ढेर था उसको भी देखा| नारदजी देखकर विस्मित हो गए| नारदजी उस तालाब में से जल बिना लिए ही लौट आए| श्रीठाकुरजी को वृतान्त सुनाकर जल नहीं लाने का कारण बता दिया| श्रीठाकुरजी ने नारदजी से कहा - "ये दो ऋषि श्रीगोवर्धन पर्वत के दर्शनों के लिए युगों से तपस्या कर रहे हैं| इनके अनेक जन्म हो चुके है| ये अस्थियां इन दोनों ऋषियों के अनेक जन्मों की है| इनके इतने जन्म हो गए की छूटे हुए देह की अस्थियों का पर्वत जैसा बन गया है| इन्हें अभी तक श्रीगोवर्धन पर्वत के दर्शन नहीं हुए हैं| आपको तो श्रीगोवर्धन पर्वत के दर्शन श्रीमहाप्रभुजी की कानि के कारण हो रहे हैं| ऐसे श्रीगोवर्धन पर्वत को बिना किसी कारण से पैरों से खुंद रहे हो, यह ठीक नही हैं| यह सुनकर मोहनदास को बहुत पश्चाताप हुआ| श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की - "भगवत सेवा के कार्य से श्रीगिरिराज पर चढ़ने में कोई दोष नहीं है| अपने कार्य व अपनी सुख सुविधा के लिए श्रीगिरिराज को खूंदना अच्छा नहीं है|" मोहनदास ने श्रीगुसांईजी से अपना अपराध क्षमा कराया| वे श्रीनाथजी के दर्शन के लिए ही श्रीगिरिराज पर पैर रखते थे| सो मोहनदास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे|


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जय श्री कृष्णा|


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