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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-
१६६
)
श्रीगुसांईजी
के सेवक एक श्रावक की बेटी की
वार्ता
श्रीगुसांईजी
आगरे पधारे थे|
वे
आगरा में रूप चाँद नंद के घर
विराज रहे थे|
उसी
समय की बात है,
किसी
विशेष अपराध में एक व्यक्ति
को फाँसी की सजा दी गयी थी|
उस
फाँसी की सजा को दस -
पन्द्रह
महिलाओं ने भी देखा|
उनमें
एक श्रावक की बेटी बड़ी दयावती
थी|
उस
मनुष्य की फाँसी की सजा को
देखकर गिर पड़ी और उसे मुर्च्छा
आ गई|
इस
बात की जानकारी श्रीगुसांईजी
को भी लगी|
उन्होंने
मन में विचार किया की यह कोई
दैवी जीव है|
दैवी
जीव के बिना अन्य किसी की ऐसी
अवस्था नहीं हो सकती है|
उसको
अचेत जानकार श्रीगुसांईजी
ने एक ब्रजवासी से कहा -
"इसके
ऊपर जल के छींटे लगाऒ|"
उस
ब्रजवासी ने ऐसा ही किया|
दो
घड़ी के बाद उसकी मूर्च्छा
खुली|
उस
समय उस श्रावक की बेटी ने उस
ब्रजवासी से पूछा -
"तू
कौन है?"
उस
ब्रजवासी ने कहा -
"मैं
तो श्रीगुसांईजी का सेवक हूँ|"
उससे
श्रीगुसांईजी का यश सुनकर
श्रावक की बेटी उनके दर्शन
करने के लिए आई|
उस
ब्रजवासी ने श्रीगुसांईजी
से निवेदन किया की यह मूर्च्छित
होने वाली महिला है|
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की -
"यह
शुद्ध भाववाली है,
इसके
ऊपर जितना रंग चढ़ाओगे,
उतना
रंग चढ़ेगा|"
वह
श्रावक की बेटी बोली -
"आप
जैसा कारीगर रंग चढाने वाला
कहाँ मिलेगा?"
यह
सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत
प्रसन्न हुए|
श्रीगुसांईजी
ने उसे नाम सुनाए और निवेदन
कराए|
वह
श्रावक की बेटी अपने घर में
आकर धोने और लीपने लगी|
उसके
पति ने उससे पूछा -
"तू
यह क्या करने लग गयी है?"
तब
उसने कहा -
"मैं
तो श्रीगुसांईजी की सेवक हो
गयी हूँ|"
उसके
पति ने कहा -
"मैं
भी श्रीगुसांईजी का सेवक हो
कर आता हूँ|"
इस
प्रकार उसका पति भी श्रीगुसांईजी
का सेवक हो गया|
दोनों
स्त्री -
पुरुष
श्रीठाकुरजी को पधरा कर सेवा
करने लगे। प्रतिदिन श्रीगुसांईजी
के दर्शन करने के लिए आते थे|
श्रीगुसांईजी
आगरे से श्रीगोकुल पधारने
लगे तो उस समय श्रावक की बेटी
ने श्रीगुसांईजी से निवेदन
किया -
"आपके
दर्शनों के बिना मैं नही रह
सकती हूँ|"
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की -
"तू
प्रतिदिन यमुना जल भरने के
लिए आना|
जब
तू यमुनाजी में स्नान करेगी
तो हम तुजे दर्शन देंगे|"
श्रीगुसांईजी
के श्रीगोकुल पधारने पर श्रावक
की बेटी निर्देशानुसार
यमुनास्नान करने लगी|
फिर
कुछ दिन बाद कुछ ब्रजवासी
श्रीगोकुल से आगरा आए,
वे
उसके घर में उतरे थे|
उनमें
से एक ब्रजवासी ने उस श्रावक
की बेटी से कहा -
"मैं
श्रीगोकुल में श्रीगुसांईजी
की बैठक मैं गौमुखी भूल आया
हु अत:
श्रीगोकुल
के लिए वापस जा रहा हूँ|
तभी
प्रसाद ग्रहण करूँगा|"
उस
श्रावक की बेटी ने कहा -
"रुको
-
रुको,
मैं
श्रीगुसांईजी के दर्शन करने
जाउंगी तो मैं तुम्हारी गौमुखी
भी ले आउंगी|"
इतना
कहकर वहsravak
की
बेटी जल भरने के लिए यमुना पर
गयी और जब स्नान करके दर्शन
किए तो उस ब्रजवासी की गौमुखी
भी मिल गयी|"
गौमुखी
लेकर आई और उस ब्रजवासी को दी,
ब्रजवासी
बड़े विचार में पद गया की इतनी
जल्दी यह श्रीगोकुल जाकर इस
गौमुखी को कैसे ले आई|
वह
ब्रजवासी उस श्रावक की बेटी
के पावों पर गिर पड़ा|
उसने
कहा -
"इसमें
आश्चर्य की कोई बात नहीं है,
यह
सब तो श्रीगुसांईजी का प्रताप
है|
जब
श्रीगुसांईजी अलौकिक देह का
दान करते हैं,
तो
सब कार्य सिद्ध होते है|
यह
सुनकर ब्रजवासी चुप रह गया|
वह
श्रावक की बेटी ऐसी कृपा पात्र
हुई जिसको अलौकिक पदार्थ
सर्वत्र सर्व में व्यापक दीखते
थे|
|जय
श्री कृष्णा|
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