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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१६५))श्रीगुसांईजी के सेवक एक किशोरी बाई की वार्ता
किशोरी
बाई एक वैष्णव की बेटी थी जो
बाल्यावस्था में ही श्रीगुसांईजी
की सेवक हुई। इसके बाद उसके
शीतला (चेचक)
निकली,उसके
प्रभाव पैरो लुज्ज (लूली)
हो
गई। उसके माता-पिता
हो गया। उसकी एक बहिन जो करा
देती थी। किशोरी बाई बचपन में
ही यमुनाष्टक का पाठ करना शिख
गई थी। वह अष्ट प्रहर श्रीयमुनाष्टक
का पाठ किया करती थी। एक दिन
किशोरी बाई की बहिन कुपित हो
गई अत:
वह
उसे खाना खिलाने नहीं आइ। उस
दीन श्रीयमुनाजी स्वयं पधारी
और रसोई करके प्रसाद लिव गई।
उसी दिन उसका आधा रोग मिट गया।
दूसरे दिन भी श्रीयमुनाजी
ने पूर्व्रत कृपा की और किशोरी
बाई का सारा ययोग मिट गया।
तीसरे दीन तो किशोरी बाई का
सारा रोग मिट गया। दूसरे दिन
तो किशोरी बाई स्वयं हो रसोई
बनाने गई। उसने रसोई कर भोग
लगाया और महा प्रसाद लिया।
चौथे दिन किशोरी बाई रसोई करने
लगी। उसी समय उसकी बहिन के मन
मे विचार आया -"चार
दिन हो गए है,
किशोरी
बाई ने कुछ भी नहीं खाया है,
अतः
उसकी सुधि चाहिए।"
यह
विचार करके किशोरी बाई की बहिन
आई तो लेनी चाहिए।"
यह
विचार करके किशोरी बाई की बहिन
आई तो उसने रसोई करते देखा।
वह देखकर चकित हो गई। उसके
मन में विचार आया की इसकी
विकलांगता कैसे मिट गई?
किशोरी
बाई की बहिन ने गाँव के लोगो
को यह समाचार दिया तो गाँव के
लोग उसे देखने को आए । सभी को
आश्चर्य और प्रशन्नता हुई।
किशोरी बाई पर कृपा करके उसके
गाँव में श्रीगुसांईजी पधारे।
किशोरी बाई चलकर दर्शन करने
आइ। उसने श्रीगुसांईजी की
महाराज ,मेरे
पधराने प्रार्थना करे।"
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की -"तुम्हारे
ऊपर श्रीयमुनाजी की कृपा हुई
है। मै तुमको श्रीयमुनाजी की
रेती एक थैली में भरकर पधार
देता हूँ। तुम सभी साज श्रृंगार
से सेवा करो। यह सुनकर किशोरी
बाई बहुत प्रसन्न हुई।
श्रीगुसांईजी ने उसे रमणरेती
की रीती की थैली दी। किशोरी
बाई ने उसे सिहासन पर पधरा कर
पुष्टिमार्ग की रीती के अनुसार
सेवा करना प्रारम्भ कर दिया।
उसकी सेवा के प्रभाव से किशोरी
बाई के ऊपर ऐसी कृपा हुई की
उसे उसी गद्दी के ऊपर श्रीनाथजी
के दर्शन हुए। कभी श्रीनवनीतप्रियजी
,
किसी
दिन श्रीमथुरानाथजी,
कभी
श्रीविट्ठलेशजी ,
किसी
किसी दिन श्रीद्वारिकानाथजी
,
श्रीगोकुलनाथीजी,
श्रीगोकुलचन्द्रजी
,
श्रीबालकृष्णजी
और श्रीमदनमोहनजी के दर्शन
होने लगे। किशोरी बाई को सभी
स्वरुपो के लीला सहित दर्शन
होने लगे। वह किशोरी बाई ऐसी
कृपा पात्र हुई।
|जय
श्री कृष्णा|
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