Monday, August 22, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Do Sanchora Bhaiyo Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१६४) श्रीगुसांईजी के सेवक दो साँचोरा भाइयो की वार्ता


ये दोनों साँचोरा भाई गुजरात में रहते थे| एक समय श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे तब दोनों भाइयो को नाम निवेदन कराया था| दोनों भाई श्रीठाकुरजी की सेवा करने लगे| ये रातदिन भगवद वार्ता भी करते थे| ये दोनों श्रीसुबोधिनीजी बाँचते थे, अन्य कोई कार्य नहीं करते थे| भगवदिच्छा से यथा प्राप्त(लब्ध) में निर्वाह करते थे|एक दिन कुछ लोग श्रीगोकुल जाते हुए, इन साँचोरा बंधुओ के घर रुके| इनके घर में उन लोगो की व्यवस्था के लिए कुछ भी नहीं था। परन्तु इन्होंने विचार किया की पडोश में अमुक बनिया की दुकान हे, जो अपना मित्र भी है, उसकी दुकान खोलकर सामान निकाल लेते है| वैष्णवो को प्रसाद करा देते है| वह आएगा तो दाम चूका देंगे| यह विचार करके उन्होंने उसकी दुकान खोल ली| जितनी सामग्री की चाहना थी, उतनी टोल कर निकलl ली| बड़ा भाई सामग्री लेकर घर आ गया| छोटा भाई सामग्री लेकर घर आ गया| छोटा भाई दुकान बंध करने के लिए रुक गया| उसी समय सरकार के गश्ती सिपाही आ गए और चोर समझकर पकड़ लिया| छोटे भाई ने बड़े भाई को समाचार दिया की तुम वैष्णवो को प्रसाद लिवाना में राजा के पास से निवृत होकर कल आऊंगा| यह बात जब पड़ोशी लोगो को ज्ञात हुई तो उन्होंने राजा के लोगो से फरियाद करके कहा-"हम इनके पड़ौस में रहते है| ये प्रतिदिन चोरी करते है और लोगो को लूटते है| ये डाका भी डालते है|" इस प्रकार राजा के मनुष्यो के सामने बयान दिय उन्होंने यह भी कहा- "ऐसे आदमी को तो मार देना चाहिए|" पड़ौसी लोगो की बात का विश्वास करके उसे राजा के लोगो ने मार दिया| उसका सिर गाँव के दरवाजे पर टाँग दिया| उसका धड़ एक पेड़ से बाँधकर लोगो को यह जाहिर किया की जो भी कोई चोरी करेगा, उसका यही हल होगा| बड़े भाई ने स्नान करके भोग धरा और वैष्णवो को प्रसाद कराया तथा अपनी और वैष्णवो को प्रसाद कराया तथा अपनी और छोटे भाई की पत्तल ढककर रख दी| वैष्णवो को जाने की जल्दी थी अत: वह उन्हें गाँव की सीमा तक विदा करने चला गया| वहाँ गाँव के दरवाजे पर भाई का सिर टँगा हुआ और धड़ वृक्ष से बँधा हुआ देखा तो बहुत उदास हुआ| इससे पहले इसे भाई के मरने की कोई सुचना ही नहीं थी| उसने विदा होते हुए वैष्णवो को हाथ जोड़कर जय श्रीकृष्ण किया और दरवाजे की और देखकर रोने लगा| वैष्णव लोगो की उसकी स्थिति पर बड़ा आश्चर्य हुआ| वैष्णवो ने उसका धड़ शीश से मिलाया और श्रीनाथजी का प्रसादी वस्त्र उसके गले में बाँध लिया| चरणामृत उसके मुख में दाल दिया| वैष्णवो की कृपा से छोटा भाई जीवित हो गया| उठकर उसने मुख में दाल दिया| वैष्णवो की कृपा से छोटा भाई जीवित हो गय उठकर उसने वैष्णवो को जय श्रीकृष्ण किया| उनको दण्डवत प्रणाम करके उनसे प्रार्थना की="आज के दिन और यहाँ ठहर जाए|" इतने में ही राजा के यहाँ समाचार पहुँचा की जिस ब्राह्मण को आज सुबह मरवाया था, उसे वैष्णवो ने जीवित कर दिया है। राजा यह सुनकर बहुत दर गया| आकर उसने वैष्णवो ने जीवित कर दिया है| राजा यह सुनकर बहुत डर गया| आकर उसने वैष्णवो के चरणों में दण्डवत की और अपने अपराध की क्षमा याचना की| उसने यह भी प्रार्थना की-"मुझे अपना दास बना लो| जैसे भी बने वैसे मुझे अपनी शरण में ले लो|" राजा ने उन साँचोरा भाइयो के पड़ोसियों को मार डालने का हुकुम किया तो वैष्णवो ने राजा से उनका अपराध क्षमा कराया| राजा ने कहा-" ये वैष्णव द्रोही है, धर्म द्रोही मेरे गाँव में नहीं रहने चाहिए| राजा ने उनको देश से बहार निकाल दिया| उनके घर का सामान लूट लिया गया| राजा उन साँचोरा भाई ऐसे कृपा पात्र थे, जिनके चित की वृति रात-दिन श्रीगुसांईजी के चरणों में रहती थी| उनका ध्यान सदैव वैष्णवो की सेवा में रहता था| राजा ने उन दोनों साँचोरा ब्राह्मण वैष्णवो की आजीविका की व्यवस्था कर दी| दोनों साँचोरा भाई श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र भगवदीय थे।

|जय श्री कृष्णा|
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