Tuesday, May 2, 2017

Shri Gusaiji Ke Sevak Gopal Das Ki Varta


२५२ वैष्णवो की वार्ता 
(वैष्णव - २४० श्रीगुसांईजी के सेवक गोपालदास की वार्ता
गोपालदास के लिए जब नाम निवेदन हुआ तो गोपालदास ने श्रीगुसांईजी से विनती की - "महाराज, अब मुझे क्या करना है?" तब श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की - "तुम गोपीनाथ का सत्संग करो|" गोपालदास गोपीनाथ के पास जाकर रहे| उनका यह विचार था की गोपीनाथ कभी भी बिना विचारे कोई काम नहीं करते हैं| गोपीनाथ के पीछे पूर्ण पुरुषोत्तम shrinathji फिरा ही करते थे| किसी कार्य से गोपीनाथ व्रज से दिल्ही गए तो उनके साथ गोपालदास भी गए| रास्ते में जंगल में रात पड़ी कोई भी मनुष्य नहीं था, एक वृक्ष के नीचे डेरा किया| थकान होने के कारण गोपालदास को नींद आ गई और गोपीनाथ सर्वोत्तम स्तोत्र का जप करने बैठ गए| जब रात सवा प्रहर व्यतीत हो गई तो एक सर्प आया और गोपालदास के गले में काटने लगा| गोपीनाथ ने उस सर्प को लकड़ी से दूर किया| पून: सर्प आया तो गोपीनाथ ने दुबारा भी उसे दूर किया फिर सर्प आया, गोपीनाथ ने फिर हटाया| इस प्रकार उसने एक सौ बार गोपालदास पर सर्प आया और उतने ही बार उसे गोपीनाथ ने हटाया| इसके बाद सर्प ने गोपीनाथ से कहा - "तू मुझे कहा तक हटाएगा| मेरा इसका तो ऋणानुबंध है| एक जन्म में यह मेरे गले का रक्त पिता है दूसरे जन्म में, मैं इसके गले का रक्त पान करता हूँ|" गोपीनाथ ने कहा - "सर्पराज, अब तो यह गोपालदास का अन्तिम जन्म है, मैं तुझे काटने नहीं दूँगा| सर्प बोला - "मैं इसका लहू पिए बिना नहीं रहूंगा|" गोपीनाथ ने कहा - "तू बैठ, तूझे इसके गले का लहू पिला देते है|" यह सुनकर सर्प रुक कर बैठ गया| गोपीनाथ ने एक छुरी लेकर और कटोरी को गले के नीचे रखकर, उसके गले से खून लेना चाहा| गोपालदास की नींद खुल गई| गोपालदास बोला - "कौन है?" गोपीनाथ ने कहा - "मैं हूँ गोपीनाथ|" गोपालदास को सर्प के बारे में कोई जानकारी नहीं थी| उसने तो अपने मन में सोच लिया की गोपीनाथ करेंगे सो तो भला ही करेंगे| उसके मन में यह विचार भी नही आया की गोपीनाथ मुझे इस घोर जंगल में मारने के लिए छुरी लिए हैं| गोपालदास को कुछ पता भी नहीँ था| गोपीनाथ ने सर्प के लिए गोपालदास का लहू पिला दिया और गोपालदास के गले पर मरहम पट्टी कर दी| फिर तो गोपीनाथ भी सो गए| प्रात:काल उठाकर दोनों पून:चल पड़े| रास्ते में गोपीनाथ ने गोपालदास को रात्रि की घटना बताई| दोनों जने श्रीगोकुल में आ गए| गोपीनाथ ने श्रीगुसांईजी से विनती की - "गोपालदास का मैंने गाला काटा, तो भी यह कुछ भी नहीं बोला|" श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की - "गोपालदास ने विश्वास रखा|" विश्वास रखने से व्यक्ति मृत्यु से भी बच जाता है| वैष्णव के संग से जन्म जन्मान्तर के संकटों से मुक्ति मिल जाती है, यह विश्वास पक्का होना चाहिए| वास्तव में गोपालदास ऐसे श्रीगुसांईजी के कृपा पात्र थे की जिनके विश्वास की सराहना श्रीगुसांईजी ने भी की|


                                                                    | जय श्री कृष्ण|
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