Monday, May 8, 2017

Shri Gusaiji Ke Sevak Dakshin ke Raja Ki Varta


२५२ वैष्णवो की वार्ता 
(वैष्णव - २२८ श्रीगुसांईजी के सेवक दक्षिण के राजा की वार्ता

दक्षिण देश के राजा के एक सौ आठ रानियाँ थी लेकिन किसी भी रानी के कोई भी सन्तान नहीं थी| राजा का मन बहुत उदास रहता था| अत: राजा मन में दु:ख को हल्का करने के लिए यात्रा करने के लिए गया| वह श्रीजगन्नाथ राय के दर्शन करने पहुँचा| वहाँ उसे श्रीगुसांईजी के दर्शन साक्षात् पूर्ण पुरुषोत्तम रूप में हुए| राजा श्रीगुसांईजी का सेवक हो गया| उसने श्रीगुसांईजी से विनती की - "महाराज, मेरे कोई सन्तान नहीं है अत: मेरा मन लौकिक में बहुत अधिक आसक्त है|" श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की - "तुम भगवद् सेवा करो|" वह राजा श्रीठाकुरजी पधराकर भगवत् सेवा करने लग गया| वह अपने देश में आ गया| यहाँ आकर उसने एक तेली की बेटी को अपनी रानी और बना लिया| उस रानी ने राजा से कहा - "मुझ को भगवत् सेवा करने दो|" राजा ने उससे कहा - "तुम श्रीगोकुल जाकर श्रीगुसांईजी की सेवक होकर आओ, तब तुम्हें सेवा दी जा सकेगी|" वह अपने मनुष्यों के साथ लेकर श्रीगोकुल गई और वहाँ जाकर श्रीगुसांईजी की सेवक हुई| उसने श्रीनवनीतप्रियजी के दर्शन किये| अपने देश में आकर श्रीगुसांईजी के सब समाचार राजा को सुनाए| रानी ने सेवा में स्नान किया| वह सामग्री बनाकर भोग रखने लगी| वागावस्त्र का श्रृंगार करके श्रीठाकुरजी को प्रसन्न करने लगी| यह देखकर राजा भी बड़ा प्रसन्न हुआ| प्रतिदिन राजा उस रानी के पास आकर भगवद् वार्ता करे और उसे सेवा की रीति समझावे और स्वयं भी समझे| इस प्रकार सेवाभाव में रत रहते हुए राजा के यहाँ उसी रानी से एक बेटा हुआ| वह बहुत गुणवान हुआ| राजा ने श्रीगोकुल में विनय पत्र लिखकर श्रीगुसांईजी को पधराकर विनती की - "महाराज, इस बेटा को अपना सेवक करो|" श्रीगुसांईजी ने उसे नाम निवेदन कराया| इसके बाद राजा ने श्रीगुसांईजी से विनती की - "महाराज, मैं किस का सत्संग करूँ, मुझे कोई तादृशी भगवदीय सत्संग के लिए नहीं मिल रहा है|" श्रीगुसांईजी ने राजा को आज्ञा की - "यहाँ पर अद्भुतदास आएंगे| तुम उनका सत्संग करना|" कुछ दिन बाद अद्भुतदास वहाँ आए| राजा ने उनका सत्संग किया| श्रीठाकुरजी ने उस राजा को अनुभव जताया| राजा की बुद्धि निष्काम हो गई| वह राजा श्रीगुसांईजी का इस कृपा पात्र हुआ|


                                                                    | जय श्री कृष्ण|
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