Saturday, June 18, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Kunjari Ki Varta



२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१५२)श्रीगुसांईजी के सेवक एक कुंजरी की वार्ता

एक दिन श्रीगुसांईजी गोपालपुर से श्रीगोकुल पधार रहे थे। एक कुंजरी प्यास से धबराकर पड़ी थी । श्रीगुसांईजी ने खवास से कहा:- " ये कौन पड़ी है?" खवास ने कहा-"प्यास के कारण इस औरत के प्राण निकल रहे है|" श्रीगुसांईजी ने कहा -"अपनी झारी में से इसको जल पिलाओ|" खवास ने कहा-"झारी छू जाएगी|" श्रीगुसांईजी ने कहा-"झारी तो दूसरी भी आ जाएगी|" परन्तु इस औरत के प्राण तो बच जायेंगे|" यह सुनकर खवास ने उस औरत को जल पिलाया, उसके प्राण लौट आए| वह चैतन्य हो गई| वह कुंजरी अपना समस्त द्रव्य लेकर श्रीगोकुल में आ गई| वह दिन में तो दुकान लगाकर बैठती थी और रात्रि में ग्राम से बहार जा कर सो जाती थी क्यों की बादशाह अकबर के आदेश से श्रीगोकुल में बड़ी जात वाले को रहने की मनाई थी । अत: कुंजरी बाहर से उत्तम मेवा लाकर गाँव में बेचती थी| जो कोई मन्दिर में पहुंचाने के लिए मेवा खरीदे तो उसे कम दाम खर्च करने पड़ते थे| उसे मेवा कम दाम में मिलती थी| वह समझती थी की मेरा द्रव्य इसी प्रकार श्रीनाथजी को समर्पित हो सकता है| इस प्रकार जीवनजीते हुए उसका जीवन श्रीगोकुल में पूर्ण हुआ| जब श्रीगुसांईजी श्रीयमुना के घाटपर पधारते थे तो कुंजरी को उनके दर्शन होते थे| श्रीगुसांईजी के दर्शन पूर्ण पुरुषोत्तम रूप में होते थे, इसी लिए कुंजरी देह समाप्ति तक श्रीगोकुल में रही| उसे श्रीगुसांईजी के दर्शन पूर्ण पुरुषोत्तम रूप में ही होते थे| सो वह कुंजरी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपा पात्र भगवदीय थी ।

|जय श्री कृष्णा|
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