Wednesday, February 18, 2015

( Vaishnav 10 ) Shri Gusaiji ke sevak Madhuridas ki Varta






२५२ वैष्णवों की वार्ता

(वैष्णव - १०) श्री श्रीगुसांईजी के सेवक माधुरीदास माली की वार्ता
 
 
माधुरीदास माली प्रतिदिन फूल बीनकर हार बनाकर लाता था । एकदिन श्रीनाथजी ने माधुरीदास को हार गूंथना सिखाया । माधुरीदास ने उन के अनुसार हार गूंथकर श्रीगुसांईजी को दिया। श्रीगुसांईजी ने मुखिया को दिया । मुखिया ने श्रीनाथजी को धराया । हार बड़ा बहुत था सो मुखिया ने श्रीगुसांईजी से कहा - " हार बड़ा बहुत है ।" श्रीगुसांईजी ने माधुरीदास से कहा - " तुम नित्य हार गूंथते हो , आज ऐसा क्यों बनाया है ?" तब माधुरीदास ने कहा - " मुझे तो श्रीनाथजी ने पास बैठकर सिखाया है ।" तब श्रीगुसांईजी स्वयं स्नान करके हार धराने पधारे , तब श्रीनाथजी हार धराया तो हार पूरा था । श्रीगुसांईजी ने श्रीनाथजी से पूछा - " इसका क्या कारण है , अब हार पूरा क्यों है ?" तब श्रीनाथजी ने तीन कारण बताये - " एक तो , तुम्हारे हाथ के बिना मुझे किसी अन्य का हाथ सुहाता नहीं है । दूसरे - ऐसा हार हीरों का चाहिए , सो रत्नों का हार बनवाओ । तीसरे - मुखिया के मुख से दुर्गन्ध आती है । तब से श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की - " मुखिया से लेकर सभीसेवक मुख बांध कर सेवा करें । माधुरीदास माली श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था |

                                      ।जय श्री कृष्ण।
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