Friday, July 15, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Tadrushi Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१६१)श्रीगुसांईजी के सेवक एक तादृशी की वार्ता

एक भगवदीय वैष्णव और तादृशी दोनों गुजरात के वासी थे| भगवदीय वैष्णव राजनगर में रहते थे और तादृशी वैष्णव धोलका में रहते थे| दोनों की परस्पर मिलने की बहुत इच्छा रहती थी| एक समय भगवदीय की बेटी के विवाह का आयोजन था। उसने तादृशी वैष्णव के लिए कुंकुम पत्री भेजी| कन्यादान के समय तादृशी वैष्णव से मिला| उनको घर में लिवा कर लाया और स्नान कराकर प्रसाद लिवाय और उसके शयन की व्यवस्था करके कन्यादान करने के लिए बैठा| दूसरे दिन जब उठने का समय हुआ तब भी तादृशी वैष्णव श्रीठाकुरजी के मंदिर के आगे सोता रहा| भगवदीय वैष्णव ने एक प्रहर तक तादृशी को नहीं जगाया| तादृशी जान बुजकर सोता रहा| भगवदीय वैष्णव ने मन में सोचा ,"इन्हे कैसे जगाउ?" यह सोचकर उसे सोता छोड़कर स्नान करने चला गया| एक प्रहर दिन चढ़ने पर तादृशी जागा और उससे पूछा-"तुम कबके नहाये हो?" भगवदीय ने कहा अभी अभी स्नान किया है|" तादृशी ने मन में जान लिया-"इसके भगवदीयपन में कोई कसार नहीं है|" तादृशी वहाँ से विदा लेकर अपने गाँव धोलका चला गया| एक दिन तादृशी वैष्णव का स्वयं का लग्न हुआ| राजनगर से भगवदीय वैष्णव को धोलका बुलाया| वह उसी समय आया जब वर विवाह के लिए घोड़े पर चढ़कर जाने को तैयार था| उस तादृशी ने भगवदीय को देखा, वह उसी समय घोड़े से उतर गया| उस भगवदीय को घर में ले गया| उसको स्नान कराकर महाप्रसाद लिवाया और फिर घोड़े पर चढ़कर विवाह करने के लिए रावण हुआ| भगवदीय वैष्णव ने भी मान लिया की इसके तादृशीपन में कोई कसर नहीं है| इस प्रकार वे दोनों ही वैष्णव ऐसे कृपा पात्र थे की एक दूसरे के लिए लौकिक कार्य का त्याग किया| देह को आनित्य जानकर भगवदीय के मिलाप को मुख्य माना|
|जय श्री कृष्णा|
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