Monday, July 4, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Vaishyaa Ki Varta



२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१५७)श्रीगुसांईजी के सेवक एक वैश्या की वार्ता

इस वैश्या का माधवदास से बहुत स्नेह था । माधवदास ने इस वैश्या का त्याग कर दिया। माधवदास से त्यागी गई यह वैश्या नमक से टिकड़ा(नमकीन परामठे) खाती थी| घी, शाक , तेल , चावल आदि नहीं खाती थी| इस प्रकार वियोग में बारह वर्ष व्यतीत किए| एक बार श्रीगुसांईजी पधारे तो यह वैश्या दर्शनार्थ आई| उसने श्रीगुसांईजी के सेवको से निवेदन किया की मुझे श्रीगुसांईजी की शरणागत कराओ| उन सेवको ने कहा - " श्रीगुसांईजी तुम्हे शरण में नहीं लेंगे|" यह सुनकर उस वैश्या ने अन्नजल का त्याग कर दिया| उसने प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया| जब उसे दो दिन हो गए तो वैष्णवो ने श्रीगुसांईजी से कहा - "जब से माधवदास ने इसका त्याग किया है , इसने वैश्या पना त्याग दिया है| उसी दिन से नकिं टिकड़ा खाती है| यह तो आपके आने की प्रतीक्षा में थी । बारह वर्ष से प्रतीक्षारत थी| आपने वैश्याओ को शरण देने की मना कर रखी है, अत: यह अब प्राण त्यागना चाहती है| इसने अन्न जल त्याग दिया है| यदि आप इसे शरण में ले सके तो इसके प्राण बच सकते है| सभी वैष्णवों की सहमति पर श्रीगुसांईजी ने उस वैश्या को उसी समय बुलवाया श्रीगुसांईजी ने उसे नाम निवेदन कराया| उसके यहाँ भगवत सेवा भी पधरा दी| तभी यह वैश्या श्रीमदनमोहनजी को अंगीकार करने लगी| बहुत दिन व्यतीत होने पर भी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपा हुई की श्रीमदनमोहनजी सानुभव जताने लगे| वह वैश्या की ऐसी कृपा पात्र भगवदीय थी जिससे श्रीमदनमोहन सानुभव हुए|

|जय श्री कृष्णा|
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