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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१५७)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक वैश्या की वार्ता
इस
वैश्या का माधवदास से बहुत
स्नेह था । माधवदास ने इस वैश्या
का त्याग कर दिया। माधवदास
से त्यागी गई यह वैश्या नमक
से टिकड़ा(नमकीन
परामठे)
खाती
थी|
घी,
शाक
,
तेल
,
चावल
आदि नहीं खाती थी|
इस
प्रकार वियोग में बारह वर्ष
व्यतीत किए|
एक
बार श्रीगुसांईजी पधारे तो
यह वैश्या दर्शनार्थ आई|
उसने
श्रीगुसांईजी के सेवको से
निवेदन किया की मुझे श्रीगुसांईजी
की शरणागत कराओ|
उन
सेवको ने कहा -
" श्रीगुसांईजी
तुम्हे शरण में नहीं लेंगे|"
यह
सुनकर उस वैश्या ने अन्नजल
का त्याग कर दिया|
उसने
प्राण त्यागने का निश्चय कर
लिया|
जब
उसे दो दिन हो गए तो वैष्णवो
ने श्रीगुसांईजी से कहा -
"जब
से माधवदास ने इसका त्याग किया
है ,
इसने
वैश्या पना त्याग दिया है|
उसी
दिन से नकिं टिकड़ा खाती है|
यह
तो आपके आने की प्रतीक्षा में
थी । बारह वर्ष से प्रतीक्षारत
थी|
आपने
वैश्याओ को शरण देने की मना
कर रखी है,
अत:
यह
अब प्राण त्यागना चाहती है|
इसने
अन्न जल त्याग दिया है|
यदि
आप इसे शरण में ले सके तो इसके
प्राण बच सकते है|
सभी
वैष्णवों की सहमति पर श्रीगुसांईजी
ने उस वैश्या को उसी समय बुलवाया
श्रीगुसांईजी ने उसे नाम
निवेदन कराया|
उसके
यहाँ भगवत सेवा भी पधरा दी|
तभी
यह वैश्या श्रीमदनमोहनजी को
अंगीकार करने लगी|
बहुत
दिन व्यतीत होने पर भी श्रीगुसांईजी
की ऐसी कृपा हुई की श्रीमदनमोहनजी
सानुभव जताने लगे|
वह
वैश्या की ऐसी कृपा पात्र
भगवदीय थी जिससे श्रीमदनमोहन
सानुभव हुए|
|जय
श्री कृष्णा|
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