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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१५९)श्रीगुसांईजी
के सेवक श्यामदास विरक्त की
वार्ता
विरक्त
श्यामदास के ऊपर श्रीगुसांईजी
की पूर्ण कृपा थी|
उनको
श्रीठाकुरजी अनुभव जानते थे|
एक
दिन लालदास ब्राह्मण श्रीगुसांईजी
का सेवक बना और उसने विनती की
-
"महाराज,में
कैसे करुँ?
मेरा
चित्त स्थिर नहीं रहता है|"
श्रीगुसांईजी
ने कहा -
"तुम
एक वर्ष तक श्यामदास का सत्संग
करो|"
श्रीगुसांईजी
की आज्ञा की अनुपालना करते
हुए लालदास ने श्यामदास से
कहा -"में
एक वर्ष तक तुम्हारा सत्संग
करूंगा|
मुझे
एतदर्थ श्रीगुसांईजी ने आज्ञा
दी है|"
श्यामदास
ने कहा-
" मुझे
तो पर देश जाना है|"
लालदास
ने कहा -"में
भी आपके साथ ही चलूँगा,
आपकी
टहल करूँगा|"
श्यामदास
परदेश के लिए रवाना हुए|
लालदास
भी उनके साथ ही चल दिया|
रास्ते
में एक गाँव में एक वैष्णव के
घर मण्डान था अत:
उस
दिन पाँच सो मनुष्यो को भोजन
कराने का निष्चय किया गया था|
उन्होंने
श्यामदास और लालदास को भी
निमंत्रण दिया|
दोनों
जब भोजन करने बैठे तो श्यामदास
को पतल पर सब कीड़ा जैसे दिखाई
दिए|
श्रीठाकुरजी
ने श्यामदास को ऐसा अनुभव
कराया की यह द्रव्य कन्या -
विक्रय
का है|
अत:
मैंने
न तो आरोगा है और नाही अंगीकार
किया है|
तुम
यह प्रसाद मत लेना|
अत:
श्यामदास
को बहुत समझाया,
लेकिन
उसने प्रसाद लेने के लिए मनाकर
दिया|
लोगो
ने श्यामदास को बहुत समझाया,
लेकिन
उसने प्रसाद नहीं लिया|
वह
तो वहां से उठकर दूसरे गाँव
में चला गया|
लालदास
वही बैठा रहा और सोचता रहा-
"श्यामदास
कैसा वैष्णव है?
जो
वैष्णव का कहना नहीं मानता
है|
लालदास
ने प्रसाद ग्रहण किया और प्रसाद
ग्रहण करके श्यामदास के पास
गए|
उस
दिन से श्यामदास ने लालदास
से बोलना बन्ध कर दिया|
केवल
उसके लिए पत्तल घर देते थे,
प्रसाद
करा देते थे|
इस
प्रकार एक वर्ष व्यतीत हो गया|
जब
श्रीगोकुल लौटकर आए तो लालदास
ने श्रीगुसांईजी से विनती की
-"श्यामदास
तो कुछ भी नहीं समझता है,
इसने
पाँच सौ वैष्णवो की आज्ञा का
तिरस्कार किया है|
हमने
तुमसे श्यामदास के अनुकूल
आचरण का आदेश दिया था तो तुमने
वहाँ भोजन क्यों किया?
वह
द्रव्य तो कन्या विक्रम का
था|
श्रीठाकुरजी
ने नहीं आरोगा था|
अत:
अब
तुम दो वर्ष तक पुन:
श्यामदास
की टहल करो|
श्रीगुसांईजी
की आज्ञा पाकर लालदास पुन:
श्यामदास
की टहल karne
लगे|
श्यामदास
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे जिनको श्रीठाकुरजी
ने जताया था की कन्या विक्रय
के द्रव्य से किया जाने वाला
सत्कर्म भी व्यर्थ होता है|
|जय
श्री कृष्णा|
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