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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१६१)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक तादृशी की वार्ता
एक
भगवदीय वैष्णव और तादृशी दोनों
गुजरात के वासी थे|
भगवदीय
वैष्णव राजनगर में रहते थे
और तादृशी वैष्णव धोलका में
रहते थे|
दोनों
की परस्पर मिलने की बहुत इच्छा
रहती थी|
एक
समय भगवदीय की बेटी के विवाह
का आयोजन था। उसने तादृशी
वैष्णव के लिए कुंकुम पत्री
भेजी|
कन्यादान
के समय तादृशी वैष्णव से मिला|
उनको
घर में लिवा कर लाया और स्नान
कराकर प्रसाद लिवाय और उसके
शयन की व्यवस्था करके कन्यादान
करने के लिए बैठा|
दूसरे
दिन जब उठने का समय हुआ तब भी
तादृशी वैष्णव श्रीठाकुरजी
के मंदिर के आगे सोता रहा|
भगवदीय
वैष्णव ने एक प्रहर तक तादृशी
को नहीं जगाया|
तादृशी
जान बुजकर सोता रहा|
भगवदीय
वैष्णव ने मन में सोचा ,"इन्हे
कैसे जगाउ?"
यह
सोचकर उसे सोता छोड़कर स्नान
करने चला गया|
एक
प्रहर दिन चढ़ने पर तादृशी जागा
और उससे पूछा-"तुम
कबके नहाये हो?"
भगवदीय
ने कहा अभी अभी स्नान किया
है|"
तादृशी
ने मन में जान लिया-"इसके
भगवदीयपन में कोई कसार नहीं
है|"
तादृशी
वहाँ से विदा लेकर अपने गाँव
धोलका चला गया|
एक
दिन तादृशी वैष्णव का स्वयं
का लग्न हुआ|
राजनगर
से भगवदीय वैष्णव को धोलका
बुलाया|
वह
उसी समय आया जब वर विवाह के
लिए घोड़े पर चढ़कर जाने को तैयार
था|
उस
तादृशी ने भगवदीय को देखा,
वह
उसी समय घोड़े से उतर गया|
उस
भगवदीय को घर में ले गया|
उसको
स्नान कराकर महाप्रसाद लिवाया
और फिर घोड़े पर चढ़कर विवाह
करने के लिए रावण हुआ|
भगवदीय
वैष्णव ने भी मान लिया की इसके
तादृशीपन में कोई कसर नहीं
है|
इस
प्रकार वे दोनों ही वैष्णव
ऐसे कृपा पात्र थे की एक दूसरे
के लिए लौकिक कार्य का त्याग
किया|
देह
को आनित्य जानकर भगवदीय के
मिलाप को मुख्य माना|
|जय
श्री कृष्णा|
Jsk
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