Wednesday, July 13, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Baharvala chuhuda ki varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१६०)श्रीगुसांईजी के सेवक बाहरवाला चूहुडा की वार्ता 

वह चूहुडा नित्य प्रति श्रीगोकुल की गलियों की सफाई करता था| वह यह भी जनता था की श्रीगुसांईजी ठकुरानी घाट पर पधारते है| इनके चरणों में कचरा नहीं लगे तो अधिक अच्छा रहे| वैष्णव लोग जूठी पत्तल डालते थे, वह लेता था और वैष्णवो की जूठन खाता था। वैष्णवो की जूठन खाने से उसे दिव्य दृष्टी प्राप्त हुई| वह पुष्टि मार्ग की सम्पूर्ण रीती को समझ गया| उसे वेद शास्त्रों का भी ज्ञान हो गया| जैसे - भक्तभाल के के रचयिता नाभादास को भक्तो का चरित्र दिव्य दृष्टि से दिखाई दिया, उसे उन्होंने भक्त माल में वर्णित किया| ऐसे ही इस चूहुडे को भी ज्ञान हुआ| एक दिन श्रीगोकुल में काशी के पण्डित आए| उन्होंने रसोई बनाई और खाकर उस चूहुडे की जूठी पत्तल देने लगे| उस चूहुडे ने कहा -"में तो जूठी पत्तल नहीं लेता हू|" फिर वे दूसरी रोटी देने लगे तब उसने कहा-"ये तो अनप्रसादी है, इसका भोग श्रीठाकुरजी ने नहीं लिया हहै| में श्रीठाकुरजी की भोग न धरी हुई सामग्री नहहि लेता हूँ|" उन पण्डितो ने कहा -"ये रोटी भोग धरि गई है|" उस चूहुडे ने कहा -"इन्हे श्रीठाकुरजी ने आरोगा है| असल में तो तुम्हारी साडी रसोई जूठी है, तुमने मुख से चूल्हा फुंफा है| अत: श्रीठाकुरजी ने भोग नहीं आरोगा है।" उस चूहुडे ने वेद व शास्त्रों के बहुत से वचन कहने लगे -"जिस गाँव का चहुडा इतना विद्वान है उसके अधिष्ठाता श्रीगुसांईजी कितने विद्वान होंगे| यह सोचकर वे पण्डित बिना कुछ शास्त्रार्थ की चर्चा किये ही पुन: चले गए| उन पण्डितो के वापस होने की बात जब श्रीगुसांईजी ने सुनी तो उन्होंने आज्ञा की -"इस चूहुडे ने वैष्णवो की जूठन ली है अत: इसे शास्त्रों का बोध हो गया है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है,क्योकि वैष्णवो की जूठन लेने से हृदय शद्ध हो जाता है, गुआन दृष्टी हो जाती है| अन्य मार्ग के पण्डित इस मर्म को क्या जाने?" यह कहकर श्रीगुसांईजी चुप हो गए| वह चहुडा ऐसा कृपा पात्र था जो वैष्ण्वो की जूठन खाकर ऐसा भाग्यशाली बन गया|
|जय श्री कृष्णा|



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