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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१६०)श्रीगुसांईजी
के सेवक बाहरवाला चूहुडा की
वार्ता
वह
चूहुडा नित्य प्रति श्रीगोकुल
की गलियों की सफाई करता था|
वह
यह भी जनता था की श्रीगुसांईजी
ठकुरानी घाट पर पधारते है|
इनके
चरणों में कचरा नहीं लगे तो
अधिक अच्छा रहे|
वैष्णव
लोग जूठी पत्तल डालते थे,
वह
लेता था और वैष्णवो की जूठन
खाता था। वैष्णवो की जूठन खाने
से उसे दिव्य दृष्टी प्राप्त
हुई|
वह
पुष्टि मार्ग की सम्पूर्ण
रीती को समझ गया|
उसे
वेद शास्त्रों का भी ज्ञान
हो गया|
जैसे
-
भक्तभाल
के के रचयिता नाभादास को भक्तो
का चरित्र दिव्य दृष्टि से
दिखाई दिया,
उसे
उन्होंने भक्त माल में वर्णित
किया|
ऐसे
ही इस चूहुडे को भी ज्ञान हुआ|
एक
दिन श्रीगोकुल में काशी के
पण्डित आए|
उन्होंने
रसोई बनाई और खाकर उस चूहुडे
की जूठी पत्तल देने लगे|
उस
चूहुडे ने कहा -"में
तो जूठी पत्तल नहीं लेता हू|"
फिर
वे दूसरी रोटी देने लगे तब
उसने कहा-"ये
तो अनप्रसादी है,
इसका
भोग श्रीठाकुरजी ने नहीं लिया
हहै|
में
श्रीठाकुरजी की भोग न धरी हुई
सामग्री नहहि लेता हूँ|"
उन
पण्डितो ने कहा -"ये
रोटी भोग धरि गई है|"
उस
चूहुडे ने कहा -"इन्हे
श्रीठाकुरजी ने आरोगा है|
असल
में तो तुम्हारी साडी रसोई
जूठी है,
तुमने
मुख से चूल्हा फुंफा है|
अत:
श्रीठाकुरजी
ने भोग नहीं आरोगा है।"
उस
चूहुडे ने वेद व शास्त्रों
के बहुत से वचन कहने लगे -"जिस
गाँव का चहुडा इतना विद्वान
है उसके अधिष्ठाता श्रीगुसांईजी
कितने विद्वान होंगे|
यह
सोचकर वे पण्डित बिना कुछ
शास्त्रार्थ की चर्चा किये
ही पुन:
चले
गए|
उन
पण्डितो के वापस होने की बात
जब श्रीगुसांईजी ने सुनी तो
उन्होंने आज्ञा की -"इस
चूहुडे ने वैष्णवो की जूठन
ली है अत:
इसे
शास्त्रों का बोध हो गया है।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं
है,क्योकि
वैष्णवो की जूठन लेने से हृदय
शद्ध हो जाता है,
गुआन
दृष्टी हो जाती है|
अन्य
मार्ग के पण्डित इस मर्म को
क्या जाने?"
यह
कहकर श्रीगुसांईजी चुप हो
गए|
वह
चहुडा ऐसा कृपा पात्र था जो
वैष्ण्वो की जूठन खाकर ऐसा
भाग्यशाली बन गया|
|जय
श्री कृष्णा|
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