Wednesday, February 4, 2015

(वैष्णव - ७ ) श्री गुसाईंजी के सेवक मधुसूदन दास की वार्ता



२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - ) श्री गुसाईंजी के सेवक मधुसूदन दास की वार्ता 





एक समय मधु सूदन दास श्रीगोकुल में आएं यहाँ आकर उन्होंने श्रीगुसाईजी के दर्शन किए । उनके मन में विचार आया कि श्रीगुसाईजी का सेवक हो जाऊँ । उन्होंने श्रीगुसाईजी से एतदर्थ विनम्र निवेदन किया । श्रीगुसाईजी ने उन्हें स्नान करके आने के लिए आज्ञा दी । उनके स्नान करके लौटने पर श्रीगुसाईजी ने उन्हें नाम निवेदन कराया । इससे मधुसूदन दास का मन बहुत प्रसन्न हुआ । उनका मन श्रीगोकुल में रम गया अत : पृष्टि मार्ग की रीति सीखने के लिए श्रीगोकुल में रह गए । यहाँ भिक्षावृति करके निर्वाह करने लगे । एक दिन श्रीगुसाईजी ने पूछा - " तुम भिक्षा कहाँ माँगते हो ?" उन्होंने कहा - " सभी के घर से माँगलाता हुँ ।" श्रीगुसाईजी ने कहा - " हमारे सेवक गण , भटट समुदाय और हमारे नौकर , इनके घर से भिक्षा नहीं लेनी चाहिए , कयोंकि इनके यहाँ तो हमारा ही द्रव्य जाता है | देव - द्रव्य , गुरु - द्रव्य और विप्र - द्रव्य , इनका द्रव्य लेने से बुद्धि भ्रष्ट होती है ।" अब तो मधुसूदनदास इन घरों को त्याग कर भिक्षा करने लगे । मधुसूदन दास के चित को स्थिर देखर श्रीगुसाईजी ने उन्हें पान - घर की सेवा प्रदान की । मधुसूदन दास का सेवा में ऐसा मन लगा कि जन्मभर श्रीनाथजी की सेवा की । 


।जय श्री कृष्ण।

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