२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव- २४ ) श्री गुसांईजी के सेवक राजा लखा की वार्ता
वह राजा लाखा ब्रज में तीर्थ यात्रा करने के लिए आया और श्रीनाथजी के दर्शन करके, वह श्रीगुसांईजी की शरण में गया. वह श्रीनाथजीके स्वरुप में ऐसा आसक्त हुआ की उसे श्रीनाथजी की सेवा के सीसा कुछ भी नहीं भाता था. उसको तो अष्ट प्रहार श्रीनाथजी की रटन रहती थी. एक दिन उसकी स्त्री ने कहा - "यदि वहाँ पर्दा की व्यवस्था हो जाए तो , मैं भी श्रीनाथजी के दर्शन करना चाहति हुँ. तब राजा लाख ने कहा - "श्रीनाथजी के यहाँ पर्दा कैसा ?" उस रानी ने अपने स्तर पर ही श्रीगुसांईजी से विनती करके पर्दा की व्यवस्था करा ली. वह जब दर्शन के लिए आयी, वहाँ एक राजा ही अंदर विद्यमान था और कोई मनुष्य नहीं था. श्रीनाथजी ने किवाड़ खोल डाले। अचानक रानी के ऊपर भीड़ पड़ी. उस समय राजा ने रानी से कहा - "मैंने कहा था न, यहाँ पर पर्दा नहीं चलता है. श्रीनाथजी रानी के समक्ष राजा लखा की बात को सत्य करने के लिए स्वयं ने ही किवाड़ खोले थे. राजा लाख श्रीनाथजी मैं ऐसे आसक्त थे और श्री गुसाँईजी की करुआ से उनका भाव सदा ही उसी प्रकार का बना रहा.
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जय श्री कृष्ण|
Shriji ke darshan hi bhahot Kam karega
ReplyDeleteJay Shree kirshana
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