Wednesday, July 12, 2017

Krishna Janmashtami 2017 Date, Puja, and Celebration

Krishna Janmashtami 2017(कृष्ण जन्माष्टमी ) 
श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली मानव अवतारों में से एक माना जाता है। देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।

कब हुआ श्री कृष्ण का जन्म 

उनका जन्म 5,200 साल पहले मथुरा में हुआ था. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

जन्माष्टमी का वास्तविक उत्सव आधी रात के दौरान होता है क्योंकि श्रीकृष्ण को अपने मामा, कंस की शासन और हिंसा को समाप्त करने के लिए एक अंधेरे, तूफानी और तूफानी रात में जन्मा माना जाता है।

मथुरा और वृंदावन के जन्माष्टमी उत्सव, उन जगहों पर जहां श्रीकृष्ण ने अपना जीवन व्यतीत किया था, बहुत खास हैं। इस दिन मंदिरों और घरों पर शानदार ढंग से सजाया गया है और प्रबुद्ध है। रात में लंबी नमाज़ की पेशकश की जाती है और धार्मिक मंत्रों को मंदिरों में गाया जाता है।

दो कृष्णा जन्माष्टमी तिथियों के बारे में

ज्यादातर समय, कृष्ण जन्माष्टमी को लगातार दो दिनों में सूचीबद्ध किया गया है। पहला वाला स्मृती संप्रदाय के लिए है और दूसरा वैष्णव संप्रदाय के लिए है। वैष्णव संप्रदाय तिथि बाद की है। जन्माष्टमी के लिए एक ही तारीख का मतलब है कि संप्रदाय दोनों ही जन्मतिथमी को इसी तिथि पर पालन करेंगे।

नाथद्वार में कृष्णा जन्माष्टमी महोत्सव 
                                               




नाथद्वारा में श्रीकृष्ण के अलौकिक महोत्सव को देखने के लिए प्रदेश ही नहीं, बल्कि गुजरात, महाराष्ट्र सहित देश के कई अंचलों से लोग पहुंचते हैं। इधर, मंदिर ट्रस्ट द्वारा पुलिस व प्रशासनिक स्तर पर भी सुरक्षा को लेकर आवश्यक प्रबंध किए जाता हैं। महोत्सव को लेकर मंदिर को आकर्षक लाइट डेकोरेशन से सजाए जाता हैं।

मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर ढोल, बिगुल, शहनाई आदि की मधुर ध्वनि से पूरा नाथद्वारा शहर गुंजायमान हो जाता है. मन्दिर में एक माह पूर्व श्रावणमास की कृष्णपक्ष की अष्टमी से ही बधाइयों का सिलसिला शुरू हो जाता है। पुष्टिमार्गीय मर्यादा के अनुरूप श्रीकृष्ण जन्मोत्सव रात्रि में सार्वजनिक दर्शन के रूप में नहीं मनाया जाकर दूसरे दिन नन्दमहोत्सव के रूप में अर्थात्'नन्द के घर आनन्द भयो, जय कन्हैया लालकी के उद्घोष के साथ तिलकायत महाराजश्री व उनका परिवार, ब्रजवासी सेवकगण, मुखियाजी आदि तथा आगन्तुक वैष्णव प्रभु श्रीनाथजी के समक्ष नाचगान करते हुए दूध-दही का छिड़काव करते हैं।

जन्माष्टमी के अवसर पर मंगला के झांकी के समय आराध्य प्रभु श्रीनाथजी को पंचामृत से स्नान कराया जाता हे। तिलकायत राकेश महाराज मंगला की झांकी के बाद ठाकुरजी की आरती उतारते हे , तत्पश्चात् घी , शहत ,मिश्री का बुरा,आदि का श्रीजी बावा पर पधरा स्नान कराया जाता हे। सुरक्षा की दृष्टि से परिसर व में सीसीटीवी केमरे लगाए जाते हैं। आगन्तुक वैष्णवों की सुविधार्थ पानी-प्रकाश व स्वच्छता आदि की समुचित व्यवस्थाएं की जाती है। वैष्णवों को सुगमता के लिए आवास उपलब्ध हो, इस हेतु मन्दिर मण्डल द्वारा केन्द्रीय पूछताछ एवं आरक्षण कार्यालय एवं समस्त धर्मशालाओं का संचालन केन्द्र सरबरा कार्यालय को चौबीस घंटे खुले रहने की व्यवस्था की जाती हे

                                                                    | जय श्री कृष्ण|

Shri Krishna Janmahtami 2017 

Shri Krishna is considered to be one of the most powerful incarnations of Lord Vishnu. Amongst the deities, Lord Krishna is the only incarnation of Lord Vishnu whose every stage of life shows different colors. There are many exciting stories of Lord Shri Krishna from his birth to the death. People who keep faith in Hinduism and adore Lord Krishna as their deity celebrate the birth anniversary of Shri Krishna as Janmashtami. The devotees observe fast and offer worship to Lord Shri Krishna to obtain his blessings on this auspicious day.

Birth of Shri Krishna

Shri Krishna was born in Mathura 5,200 years ago. According to mythological scriptures, Lord Krishna was born at the midnight of Rohini Nakshatra on Krishna Paksha Ashtami of Bhadrapad month. Therefore, if the Ashtami of Krishna Paksha coming in Bhadrapad month coincides with Rohini Nakshatra, then it is considered to be lucky. Also, it is celebrated as anniversary along with Janmashtami. The actual celebration of Janmashtami occurs during the midnight because Lord Krishna is believed to be born on a dark and stormy night to end the cruel regime and violence of his maternal uncle Kans.

Janmashtami celebration of Mathura and Vrindavan, at places where Shri Krishna had lived his life, are very special. On this day, temples and houses are magnificently decorated and illuminated. Long prayers are offered at night and religious mantras are sung in temples.

About Two Krishna Janmashtami Dates

Most of the time, Krishna Janmashtami is declared and listed for two consecutive days. The first one is for the Smriti sect and the other is for the Vaishnava sect. The same date for Janmashtami means that the sects will follow the birth anniversary on both dates.

People not only from the internal regions of Rajasthan but also from Gujarat and Maharashtra, visit Nathdwara to witness Lord Krishna’s seraphic festival. Here, important arrangements are made by the temple trust for security at the police and administrative level. The temple is decorated with attractive light decoration for the festival. The entire city of Nathdwara reverberates owing to the melodious sound of the drum, trumpet, and clarinet at the main entrance of the temple. A series of congratulatory exchanges began pouring in a month earlier from the Ashtami of Shravan of Lord Krishna.

According to the confirmation order, Shri Krishna Janmotsav is not celebrated as a public exhibition in the night, but on the second day, as the Nandamahotsav, that is, by affirming 'Nand Gher Anand Bhayo, Jai Kanhaiya Lal Ki’ in the presence of Tilakayat Maharaj Shree and his family, Brajvasi Sevakgan (Brigadian staff), Mukhiyaji (Headman), and Lord Shrinathji along with spattering milk and curd while dancing in front of them.


On the occasion of Janmashtami, Lord Shrinathji (Shri Krishna) is given a bath with Panchamrit during the tableau of Mangla. Tilakayat Rakesh Maharaj does the Aarti of Lord Shrinathji after the tableau of Mangala and then bathes him with ghee, honey, powdered sugar, etc. CCTV cameras are installed in the premises in the context of safety. Proper arrangements of water, light and sanitation etc. are made to facilitate the arrival of Vaishnavas. Accommodation is available for the visitors, and hence the central inquiry and reservation office of the temple and the operation of all the cottages are arranged to keep the office open for 24 hours for the convenience of the Vaishnavas.


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