Monday, July 25, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Baniya Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव-१६३)श्रीगुसांईजी के सेवक एक बनिया की वार्ता

वह बनिया-वैष्णव गुजरात में रहकर भली भांति श्रीठाकुरजी की सेवा करता था| जो भी वैष्णव आता था| , उसकी सेवा भी भली भांति से करता था| उसके घर में भगवद वार्ता भी होती थी| गाँव में एक देवी का मन्दिर था, सो देवी भी भगवद वार्ता भी होती थी| गाँव में एक देवी का मन्दिर था,सो देवी भी भगवद वार्ता सुनने आती थी लेकिन उसे कोई भी देख नहीं पाता था। केवल यह वैष्णव ही उन्हें देख पाता था| एक दिन उस वैष्णव के घर में बहुत से वैष्णव आए| वर्षा अधिक होने के कारण सारा ईंधन भीग गया था। रात बहुत हो गई थी| वह वैष्णव रात्रि में लकड़ी लेने के लिए चला। रास्ते में देवी ने पूछा-"वैष्णव इतनी रात्रि में लकड़ी लेने के लिए चला। रास्ते में देवी का मन्दिर मिला| देवी मन्दिर के दरवाजे पर बाहर निकलकर खड़ी थी| देवी ने पूछा-"वैष्णव इतनी रात्रि में कहाँ जाते हो?" उस वैष्णव ने कहा-"लकड़ी लेने को जा रहा हूँ| देवी ने कहा -"अँधेरी रात और वर्षा, ऐसे समय तुम्हे लकड़ी कहाँ मिलेगी?" मेरे मन्दिर के किवाड़ बहुत पुराने व जीर्ण है,इनमे से एक को तो उत्तर कर ले जाओ|" उस वैष्णव ने एक किवाड़ उत्तर लिया और उसके टुकड़े टुकड़े करके ले गया| उस ईंधन से काम चलाया| सामग्री तैयार की और वैष्णवो को महाप्रसाद कराया| उस वैष्णव के पडौश में एक ब्राह्मण का घर था| उसकी ब्राह्मणी ने वैष्णव की पत्नी से पूछा-"तुम्हारे लड़की व छाणे (उपले) तो सब भीग गए थे,तुम सामग्री तैयार की और वैष्णवो को महाप्रसाद कराया| उस वैष्णव के पड़ौस में एक ब्राह्मण का घर था। उसकी ब्राह्मणी ने वैष्णव की पत्नी से पूछा-"तुम्हारे लकड़ी कहाँ से लाए| वैष्णव की स्त्री ने कहा-"हम तो देवी के मन्दिर का किवाड़ उतार कर लाए थे।" दूसरे दिन उस ब्राह्मणी ने अपने पति से कहा-"तुम भी देवी के मन्दिर का किवाड़ लाओ|" वह ब्राह्मण भी रात्रि के समय उस देवी के मन्दिर के किवाड़ उतारने चला गया|" उस ब्राह्मण के हाथ उस किवाड़ से ऐसे चिपक गए की ब्राह्मण ने बहुत प्रयास किया, लेकिन हाथ नहीं छूटा| वह ब्राह्मण बहुत दुःखी हुआ| एक प्रहर तक तो सीधा खड़ा रहा| बहुत देर होने पर ब्राह्मणी उस ब्राह्मण को ढूंढने गई| उसने पति को इस स्थिति में देखा तो वह उसके हाथो को किवाड़ से दूर करने लगी तो वह भी किवाड़ से चिपक गई| अब तो दोनों स्त्री पुरुष रोने लगे| देवी की प्रार्थना करने लगे| रात भर रोते लगे| देवी की प्रार्थना करने लगे| रात भर रोते रहे| जब दो घड़ी रात्रि शेष रही तो देवी ने कहा-"तुम दोनों मेरे दोनों किवाड़ नये चढ़वा देने का संकल्प करो और तुम्हारे पड़ौस में बनिया वैष्णव के घर एक लकडियोka गट्ठा रोजाना पहुँचाना स्वीकार करो तो में तुम्हे छोड़ दूँ| उन दोनों ने स्वीकृति दी तो उनके हाथ छूट गए| दोनों स्त्री पुरुष खली हाथ अपने घर आ गए| उन्होंने देवी के मन्दिर में नविन किवाड़ चढ़वाए और उस बनिया वैष्णव के घर प्रतिदिन लकडियो का गट्ठा पहुचाने लगे। इस प्रकार करते करते कि चातुमार्स बित गया और बनिया वैष्णव के यहाँ लड़कियों का बहुत ढेर हो गया तो बनिया वैष्णव ने उनसे लकड़िया लाने कको मना कर दिया और कहा की में देवीजी को आपके मुक्त करने की प्रार्थना की तो देवी के पास जाकर उन्हें मुक्त करने की प्रार्थना की तो देवी ने उन्हें मुक्त कर दिया| एक दिन ब्राह्मण ने उस बनिया वैष्णव से पूछा-"यह देवी तुम्हारा कहना क्यों मानती है?" बनिया वैष्णव से कहा -"वैष्णव धर्म ऐसा है ,जिसका सभी देवता आदर करते है?" उस ब्राह्मण ने कहा-"हमे भी वैष्णव बना लो।" उस बनिया वैष्णव ने उस ब्राह्मण को श्रीगोकुल भेजा| वे दोनों स्त्री पुरुष श्रीगोकुल में जाकर श्रीगुसाईजी के सेवक हुआ| श्रीनाथजी के दर्शन करके और सेवा पधराकर पुनः अपने देश में आए| उस बनिया वैष्णव के ऊपर श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपा थी| जिनसे श्रीठाकुरजी भी बोलते थे, वे ऐसे परम कृपापात्र थे।

|जय श्री कृष्णा|
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