Monday, March 28, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek ShreshthiPutra Aur Uski Dasi Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १२३)श्रीगुसांईजी के सेवक एक श्रेष्ठिपुत्र और उसकी दासी की वार्ता

वह सेठ श्रीगुसांईजी का सेवक था | उसके घर में एक दासी थी जब सेठ की देह छूटी तो वह अपने बेटा और श्रीठाकोरजी की सेवा का भार उस दासी पर सौंप गया | वस सेठ का बेटा उस दासी को - 'माजी' कहता था| एक बार उस गाँव में से कुछ वैष्णव श्रीनाथजी द्वार जाने लगे तो सेठ के बेटा ने कहा- " माजी,मैं यात्रा पर जा रहा हूं|" उस दासी ने कहा- "अभी तुम श्रीनाथजी के दर्शन के लिए मत जाओ| अभी श्रीनाथजीकी इच्छा नहीं है|" वह सेठ का बेटा नहीं माना वह संग साथ में चल दिया| रास्ते में एक गाँव आया| उस गाँव में सरकारी मनुष्यों के साथ उस सेठ के बेटे का जगदा हो गया| वहाँ के राजा ने संग साथियों के सहित सेठ के बेटा को कैद में डाल दिया| दो दिन बाद उस राजा ने अन्य सब को तो छोड़ दिया केवल सेठ के बेटा को कैद में ही रखा | अत: संग के अन्य सब तो श्रीनाथजी के दर्शन करके पुन: गाँव में पहुँच गए| सेठ का बेटा कैद में रहा| फिर गाँव के लोगों ने राजा से कह क्र उसे मुक्त कराया जब वह गाँव में आया तो उसने उस दासी से कहा- "माजी,मुझे तो श्रीनाथजी के दर्शन नहीं हुए| मैंने तो कैद में दू:ख और पाया अब तो जब तुम्हारी कृपा होगी, तभी मुझे श्रीनाथजी दर्शन देंगे|" उस दासी को दया आ गयी अत: उसने कहा-"तुम तो वैष्णवों की टहल करो | तुम्हें श्रीनाथजी दर्शन देंगे| सेठ का बेटा वैष्णवों की टहल करने लग गया| जो भी वैष्णव वहाँ अत,उन्हें स्नान कराता, महाप्रसाद लिवाता,पंखा जलता,जलपान कराता और पैर दाबने की सेवा करता था| वह पूरे दिन अपने शरीर से सेवा करता था| एक दिन तादृशी सन्त भगवदीय अदभुत दास जी आए| उनकी भी उसने बहुत टहल की|उस सेठ के बेटा ने अदभुतदासजी को कहा- "मैं तो श्रीनाथजी के दर्शन करना चाहता हूं | वर्जयात्रा भी करना चाहता हूं | सेठ के बेटा को अदभुतदासजी ने कहा- " तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा| श्रीगुसांईजी की कान से श्रीनाथजी तुम्हें दर्शन देंगे|" सेठ का बेटा कुछ वैष्णवों के साथ श्रीनाथजी के दर्शनों के लिए गया| जाकर उसने दर्शन किए|फिर उस दासी ने श्रीगुसांईजी से विनती की- "महाराज,श्रीनाथजी के दर्शन इसके भाग्य में नहीं थे, इसे तो वैष्णवों की कृपा से दर्शन मिले है श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की- श्रीनाथजी वैष्णवों के वश में हैं| वे चाहें तो ब्रह्माण्ड को बदल डालें| जब वैष्णव प्रसन्न होते हैं तो खोटी-खरी कर्म रेखा भी मिट जाती है|" श्रीगुसांईजी के वचन सुनकर दासी बहुत प्रसन्न हुई| सेठ का बेटा यात्रा करके अपने घर आया और सेवा करने लगा| वह दासी और सेठ का बेटा ऐसे कृपापात्र थे|

| जय श्री कृष्णा |



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